अतीक खान
‘मैं घास हूं, तुम्हारे हर किये-धरे पर उग आऊंगा’…क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह संधू-पाश के बरनाला की ‘किसान पंचायत’ का नजारा देखिए. एकदम घास के मैदान जैसा हरा-भरा दिखता है. जैसे, दबाए-सताए हुए किसान अपना हक मांगने उग आए हों. पीले लिबास धारण किये महिलाओं के साथ एक विशाल जनसमूह पंचायत की शोभा भर नहीं है. बल्कि उस झूठ पर हकीकत बनकर उग आया है, जिसमें ‘किसान आंदोलन’ की कमजोरी का अभियान चलाया जा रहा था.
ये पाश का बरनाला है, जो शहीद भगत सिंह के बाद पंजाब के सबसे बड़े क्रांतिकारी कवि हैं. पाश अपनी कविता ‘मैं घास हूं’ में बरनाला का जिक्र करते हैं. ताउम्र खेत-खिलहान, किसान, नौजवानों के दर्द को कविता में पिरोते रहे. आखिर, फिर क्यों न उनका बरनाला किसान आंदोलन की ऐतिहासिक तस्वीर पेश करता.
More than 100,000 farmers and farm workers gathered in India’s northern Punjab state in a show of strength against new agricultural laws that seek to deregulate the country's vast farm sector https://t.co/MLhf3fa44V pic.twitter.com/wCoI3NQEhM
— Reuters (@Reuters) February 21, 2021
एक अनुमान के मुताबिक शुक्रवार को बरनाला की किसान पंचायत में करीब 1.30 लाख किसान आए. उनमें हजारों बस से. पाश की वे पंक्तियां चरितार्थ करते हुए कि ‘सवारियां फिर किसी कंडक्टर से पूछेंगी, ये कौन सी जगह है, मुझे बरनाला उतार देना, जहां घास का जंगल है, मैं घास हूं, अपना काम करूंगा, तुम्हारे हर किये-धरे पर उग आऊंगा…
पिछले 89 दिनों से देशभर के हजारों किसान, दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हैं. यहां पहुंचने से पहले हरियाणा पुलिस की मार खाई. आंसू गैस के गोले, सड़कों पर खोदी गई खांई का सामना किया. दिल्ली की हाड़ कंपा देने वाली सर्दी, बारिश झेली. आतंकवादी, खालिस्तानी समर्थक होने का इल्जाम सहा.
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26 जनवरी को दिल्ली की ट्रैक्टर परेड में भड़की हिंसा के बाद अपने खिलाफ जनभावना का ज्वार भी देखा. इसके बावजूद मैदान में डटे हैं. हर उस किये धरे पर घास बनकर उग आने के लिए, जिसके वे भुक्तभोगी हैं.
संयुक्त किसान मोर्चा के मुताबिक 89 दिन के इस आंदोलन में 254 किसानों की मौत हो चुकी है. इसमें कुछ किसानों ने आंदोलन स्थल पर आत्महत्याएं भी की हैं. हाल ही में बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी-राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव ने जब सदन में मृतक किसानों को श्रद्धांजलि देने का प्रस्ताव रखा, तो उसे अनदेखा कर सदन स्थगित कर दिया गया.
In 89 days of farmers' protest over 254 farmers have lost their precious lives.
Why is govt. becoming negligent in this situation? #ModiIgnoringFarmersDeaths
— Kisan Ekta Morcha (@Kisanektamorcha) February 22, 2021
पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान में किसान महापंचायतों का दौर चल रहा है. विपक्षी दलों अपनी पंचायतें कर रहे हैं. पश्चिमी यूपी में खासतौर से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और आरएलडी नेता जयंत चौधरी मंचों पर नजर आते हैं.
इन पंचायतों में बेशुमार भीड़ उमड़ रही है. बीते दिनों हरियाणा की एक पंचायत से जब किसान नेता राकेश टिकैत ने ऐलान किया कि जरूरत पड़ी तो किसान अपनी फसल को भी नष्ट करने से पीछे नहीं हटेंगे. रविवार को पश्चिमी यूपी में इसका असर दिखा. और एक किसान ने आठ बीघा गेहूं की फसल जोत डाली.
केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान रविवार को शामली जिले के किसानों को कृषि कानूनों के फायदे बताने पहुंचे तो, उन्हें किसानों के भारी गुस्से का सामना करना पड़ा. बालियान के सामने ही उनके और भाजपा के खिलाफ नारेबाजी होने लगी. कई अन्य जगहों पर भी ऐसी ही स्थितियां सामने आईं.
सोमवार को लोकदल के नेता जयंत चौधरी ने ट्वीट पर कुछ तस्वीरें साझा कीं. इस दावे के साथ कि मंत्री के काफिल में शामिल लोगों के साथ किसानों की झड़प हो गई. इसमें कुछ किसानों को चोटें भी आने का दावा किया है.
किसान आंदोलन के साक्षी बने तीन स्थल
दिल्ली के गाजीपुर, टीकरी और सिंघु बॉर्डर. किसानों के ये तीन प्रमुख आंदोलन स्थल हैं. जहां भारी संख्या में सशस्त्र बल तैनात है. और जबरदस्त बैरिकेड कर रखा है. पहले की अपेक्षा अब आंदोलन स्थल तक आना-जाना मुश्किल है. हर आने-जाने वाले पर पहरा.
ठहरे संवाद के आगे बढ़ने की संभावना
इस सबके बीच किसाना नेता और सरकार के बीच 11 दौर की असफल बातचीत हो चुकी है. एक बार फिर संवाद बहाली की प्रक्रिया चल रही है. हालांकि संसद में जिस तरह से भाजपा ने तीनों कृषि कानूनों का बचाव किया था और अपनी रणनीति बयां की. उससे एक बात तो साफ है कि हाल फिलहाल में तो सरकार, पीछे हटने के मूड में कतई नजर नहीं आती है.
(लेखक के ये निजी विचार हैं)