Dilip Kumar Firaq Gorakhpuri : जब फिराक गोरखपुरी, चीफ गेस्ट-दिलीप कुमार से पूछ बैठे, कौन हो भाई!

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Dilip Kumar Firaq Gorakhpuri
Dilip Kumar Firaq Gorakhpuri

वसीम अख्तर


 

मुंबई का साबू सिद्दीक कंपाउंड खचाखच भरा था. जिन्हें बैठने की जगह नहीं मिली खड़े हो गए. इस भारी भीड़ के बीच जैसे ही अदाकारी का इंस्टीट्यूशन कहलाने वाले यूसुफ खान उर्फ दिलीप कुमार (Dilip Kumar) बतौर चीफ गेस्ट दाखिल हुए तो शोर मचने लगा. जिंदाबाद के नारे गूंजने लगे. इसे भी पढ़ें -जब रामपुर आए दिलीप कुमार को आजम खां ने गंगा-जमुना का डाकू, मुगले आजम का बिगड़ैल शहजादा कहा. (Dilip Kumar Firaq Gorakhpuri )

सफेद पैंट और इसी रंग की शर्ट पहने दिलीप कुमार को मंच तक पहुंचाने में आयोजक पसीने से तरबतर हो गए. तब कहीं जाकर शायरों का परिचय कराने का सिलसिला शुरू हुआ.

दिलीप कुमार प्रोफेसर वसीम बरेलवी (Waseem Barelvi) के पास पहुंचे तो उनकी नजर छह या सात कुर्सी बाद बैठे फिराक गोरखपुरी (Firaq Gorakhpuri ) पर पड़ गई. फौरन ही उनके पास पहुंचकर दिलीप साहब ने कहा-आदाब पेश करता हूं, जवाब में फिराक साहब कह पड़े कौन हो भाई.

मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी. फोटो साभार इंटरनेट

अंतरराष्ट्रीय शायर प्रोफेसर वसीम बरेलवी ने 54 साल पहले पेश आए इस वाकिये की द लीडर को तफ्सील बताई. कहा कि 1967 में न्यूज एज की तरफ से अखबार की मदद के लिए मुशायरे का आयोजन किया गया था. वसीम नाम के शख्स कार्यक्रम के आयोजक थे. (Dilip Kumar Firaq Gorakhpuri )


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ऐसा नहीं था कि फिराक साहब, दिलीप साहब को पहचान नहीं पाए, दरअसल वह अपने सामने किसी को गर्दानते (अहमियत) नहीं थे. फिराक साहब के इस रवैये के बावजूद दिलीप साहब के चेहरे पर नजरअंदाज किए जाने को लेकर शिकन तक नहीं दिखाई दी. (Dilip Kumar Firaq Gorakhpuri )

दिलीप साहब का बड़प्पन देखिए, जब उनका संबोधन हुआ तो सात मिनट फिराक गोरखपुरी पर ही बोलते रहे. उनकी दिल खोलकर बढ़ाई की. यह इस बात का सुबूत था कि वह कितनी अजीम शख्सियत थे.

शोहरत की बुलंदी पर होने के बावजूद खुद को इतना कमतर बनाकर पेश करना वाकई बहुत बड़ा दिल होने की अलामत है. इसी तरह का एक दूसरा वाकिया दिल्ली के रामलीला मैदान में सामने आया था.

प्रोफेसर वसीम बरेलवी के मुताबिक तब वह हिंदू कॉलेज में पढ़ाते थे. जब इंदिरा गांधी (Former PM Indira Gandhi) को कांग्रेस का अध्यक्ष (Congress President) बनाया जा रहा था तो उस कार्यक्रम में दिलीप कुमार भी बुलाए गए थे. रामलीला मैदान (Ramlila Ground Delhi) में तिल रखने की जगह नहीं थे. आसपास की बिल्डिंग की छतें तक भर गई थीं. (Dilip Kumar Firaq Gorakhpuri )


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अपने दोस्त मंजूर के साथ मैं (वसीम बरेलवी) भी बीसवीं सदी के आफिस की बिल्डिंग की छत पर पहुंच गया. पंडित नेहरू (Jawahar Lal Nehru) की स्पीच हो रही थी, तभी दिलीप कुमार सफेद गाड़ी से पहुंचे. उन्हें देखते ही भीड़ बेकाबू हो गई.

लड़के और लड़कियां उनका नाम लेकर नारे लगाने लगे. दिलीप कुमार के लिए भीड़ की दिवानगी का यह आलम देखकर पंडित जी को अपनी स्पीच जल्द खत्म करना पड़ी. (Dilip Kumar Firaq Gorakhpuri )

यह कहकर दिलीप साहब को डायस सौंप दिया कि अब आपके बहुत ही मकबूल हीरो आ गए हैं, वह बोलेंगे. दिलीप साहब बोलते रहे और लाखों का मजमा एक-एक लफ्ज को गौर से सुनता रहा.

तिरंगे में लिपटा दिलीप कुमार का जनाजा. राजकीय सम्मान के साथ उन्हें आखिरी विदाई दी गई.

दूसरे दिन अखबारात ने इस हवाले से कोई खबर नहीं छपी, खबर का ब्लैक आउट कर दिया गया.

इसलिए कि एक फिल्मी हस्ती के सामने प्राइम मिनिस्टर, जिनकी दुनियाभर में खास पहचान थी, भीड़ के सामने तौहीन महसूस हुई.

हमने दिलीप कुमार की मकबूलियत का यह आलम देखा है. वसीम साहब ने बताया कि बाद में जब बतौर शायर मकबूल हुआ तो दिलीप साहब के साथ कई मुशायरों (Mushaira) में करीब आने का मौका मिला. (Dilip Kumar Firaq Gorakhpuri )

एक बार तो गाड़ी में डेढ़ घंटे साथ रहे. वह अच्छे एक्टर (Actor ) ही नहीं, बहुत जहीन इंसान थे. जबान पर इतनी मजबूत पकड़ वाकई काबिले तारीफ है.

मुंबई के कब्रिस्तान में दिलीप कुमार को सुपुर्द-ए-खाक किया गया.

कम बोलना लेकिन नपा-तुला कहने में उनका कोई सानी नहीं था. फिल्म इंडस्ट्री में बहुत बड़े-बड़े कलाकर गुजरे हैं लेकिन दिलीप साहब का मुकाबला उनसे नहीं किया जा सकता.

प्रोफेसर वसीम बरेलवी कहते हैं कि दिलीप साहब का फिल्म इंडस्ट्री (Film Industry) में जो मकाम था, जगह थी, मुझे नहीं लगता ऐसी दूसरी शख्सियत पैदा हुई या होगी. (Dilip Kumar Firaq Gorakhpuri )

उन्होंने तीन नस्लों को बल्कि पूरे समाज को असरअंदाज किया. जोश भरने का काम किया. लिहाजा उनके जाने से इंसानियत का भी बहुत बड़ा नुकसान हुआ है.

दिलीप कुमार को विदाई देने निकलीं सायरा बानो.

दुनिया ने बहुत बड़ी शख्सियत खो दी है. जिसकी गुफ्तगू, रवैया, आमाल में कोई न कोई सीख होती थी. इस कमाल का दूसरा आदमी मिलना मुश्किल है. (Dilip Kumar Firaq Gorakhpuri )

इतने लंबे वक्त तक किसी कंट्रोवर्सी का शिकार नहीं हुए. कभी उनके मुंह से कोई कमजोर जुमला नहीं निकला.

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