द लीडर : यूपी विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद विधान परिषद इलेक्शन में समाजवादी पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है. भाजपा ने 36 में से 33 सीटों पर जीत दर्ज़ की है. प्रतापगढ़ की सीट पर जनसत्ता दल के अक्षय प्रताप सिंह विजयी हुए हैं. जबकि वाराणसी से अन्नपूर्ण सिंह और आज़मगढ़ से विक्रांत सिंह ने निर्दलीय चुनाव जीता है. यूपी में सपा का क्या हश्र हो चुका है, एमएलसी चुनाव के रिजल्ट से भी अंदाज़ा लगा सकते हैं, जिसमें पार्टी का ख़ाता भी नहीं खुल सका. (UP MLC Election BJP Wins)
एमएलसी की नौ सीटें भाजपा पहले ही निर्विरोध जीत चुकी थीं. इसमें 7 सीटें ऐसी हैं, जहां सपा के प्रत्याशियों ने चुनाव का मैदान ही छोड़ दिया और पर्चा वापस लेकर घर बैठ गए. यानी इनमें भाजपा से लड़ने का भी आत्मबल नहीं था. खैर, बरेली-रामपुर सीट पर समाजवादी कैंडिडेट मशकूर अहमद की हार, आज़म समर्थकों की तरफ से पार्टी के लिए संदेश भी माना जा रहा है.
यूपी विधानसभा चुनाव में सपा ने 111 सीेटें जीती थीं. इसमें 36 मुस्लिम विधायक हैं. कई विधायक आज़म ख़ान की असर वाली सीटों पर जीते हैं. अखिलेश यादव नेता प्रतिपक्ष हैं. लेकिन मुस्लिम समुदाय के नेता हों या उनके मुद्दे, दोनों को नज़रंदाज करते आ रहे हैं. किसी भी मुद्दे पर अखिलेश बोलने की हिम्मत नहीं जुटा रहे. सीतापुर के महंत बजरंग मुनि की मुस्लिम महिलाओं को बलात्कार की धमकी पर अखिलेश की चुप्पी ने मुस्लिम वोटरों को हिला दिया है. और अब पार्टी के भीतर से भी अखिलेश के वरिुद्ध आवाजें उठने लगी हैं. (UP MLC Election BJP Wins)
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पहले संभल से सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा कि अखिलेश या समाजवादी पार्टी दोनों ही मुसलमानों के लिए कोई काम नहीं कर रही हैं. उसके बाद आज़म ख़ान के मीडिया प्रभारी फसाहत ख़ान शानू ने अखिलेश यादव को निशाना बनाया. इससे एक संकेत तो स्पष्ट है कि सपा की मुस्लिम लीडरशिप में भी आक्रोशप पनप रहा है. और आज़म ख़ान सपा का साथ छोड़ने जा रहे हैं. इसकी मूल वजह मुस्लिम मुद्दों पर अखिलेश की चुप्पी और नेता प्रतिपक्ष के पद पर ख़ुद ही काबिज़ होना माना जा रहा है. ये अलग बात है कि खुद भी नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद भी अखिलेश मौन हैं.
एमएलसी चुनाव के दरम्यान दो बड़े घटनाक्रम हुए हैं. पहला ये कि अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव फिर भतीजे के व्यवहार से रूठ गए हैं. संभावना है कि वह जल्द ही भाजपा ज्वॉइन कर सकते हैं. शिवपाल के साथ ही आज़म ख़ान के व्यवहार से आह़त हैं. और उनके समर्थक अलग राह बनाने की मांग करने लगे हैं.
ऐसे हालात में एमएलसी का रिज़ल्ट सपा के लिए हैरान करने वाला है. लेकिन विपक्ष के तौर पर उसकी भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं. और अखिलेश की तुलना में बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को ज़्यादा संघर्षशील और दिलेर माना जा रहा है. हाल ही में बिहार विधान परिषद चुनाव के भी चुनाव हुए हैं. जिसमें तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी ने एमएलसी की 24 में से 6 सीटें जीती हैं. (UP MLC Election BJP Wins)
तेजस्वी यादव, सड़क से लेकर सदन तक संघर्ष कर रहे हैं, जबकि अखिलेश यादव ट्वीटर और फेसबुक के आदी हो चुके हैं. 2017 से 2022 तक अखिलेश यादव ट्वीटर-ट्वीटर और फेसबुक-फेसबुक खेलते रहे. 2022 से 2027 तक भी वह इससी भूमिका में रहने वाले हैं. यही वजह है कि एमएलसी का चुनाव परिणाम आते ही यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश पर निशाना साधा है. केशव प्रसाद मौर्य तंज कसा-विधान परिषद चुनाव परिणाम-सपा समाप्तवादी पार्टी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एमएलसी की जीत पर बधाई दी है और इसे सुशासन की जीत बताया है.