द लीडर : उत्तर प्रदेश में बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद के बाद एक और मस्जिद का विवाद अदालत पहुंच गया है. ज़िला बदायूं की ऐतिहासिक जामा मस्जिद, जो भारत की तीसरी सबसे बड़ी मस्जिदों में शुमार मानी जाती है-उसमें नीलकंठ महादेव मंदिर होने का दावा किया गया है. अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने बदायूं के सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. जिसे कोर्ट ने मंज़ूर कर लिया है. और सुनवाई की अगली तारीख़ 15 सितंबर मुकर्रर की है. (Badaun Jama Masjid News )
सिविल जज जूनियर डिविजन की कोर्ट में शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई हुई थी. सिविल जज जूनियर डिविज़न विजय कुमार गुप्ता की कोर्ट ने महासभा की याचिका स्वीकार करते हुए इस मामले में वाद दर्ज करने का आदेश दिया है. इसके साथ ही अदालत ने मस्जिद की इंतजामिया कमेटी के अलावा सुन्नी वक्फ़ बोर्ड, यूपी सरकार, राज्य पुरातत्व विभाग, ज़िला मजिस्ट्रेट और प्रमुख सचिव को अपना जवाब पेश करने को कहा है.
हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक और बदायूं ज़िलाध्यक्ष मुकेश पटेल ने 8 अगस्त को एक याचिका दाख़िल की थी. इस दावे के साथ कि जामा मस्जिद पहले नीलकंठ महादेव मंदिर था. राजा लखनपाल ने 905 में इसका निर्माण कराया था. बाद में उनके वंशज महीपाल ने इसे किले में तब्दील कर दिया था. इतिहास की किताबों के हवाला देते हुए पक्षकारों का कहना है कि 1222 ईस्वी में शमसुद्दीन इल्तुतमिश ने इसे जामा मस्जिद का आकार दिया था. (Badaun Jama Masjid News )
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जामा मस्जिद बदायूं के मौलवी टोला इलाक़े में हैं. ये काफ़ी विशाल मस्जिद है. जहां एक साथ 23 हज़ार से ज़्यादा लोग नमाज़ अदा कर सकते हैं. दिल्ली, भोपाल की जामा के बाद ये देश की तीसरी सबसे बड़ी मस्जिद मानी जाती है.
याचिकाकर्ताओं ने अपनी रिट में प्रमुख पक्षकार नीलकंठ महादेव को बनाया है. अन्य पक्षकारों में हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल, एडवोकेट अरविंद परमार, ज्ञान प्रकाश, डॉ. अनुराग शर्मा आदि शामिल हैं.
मस्जिद में महादेव मंदिर होने का दावा करने वाले पक्षकारों ने इतिहास की किताबों के हवाले से दावा किया है कि उन्हें ठीक तरह से मालूम है कि पहले यहां मंदिर हुआ करता था. याचिका में साल 2005-06 में सूचना विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक का भी संदर्भ दिया गया है. (Badaun Jama Masjid News )
इस ऐतिहासिक मस्जिद पर मंदिर के दावे की ख़बर ने सनसनी फैला दी है. मस्जिद की इंतजामिया कमेटी के अलावा मुस्लिम संगठनों की तरफ़ से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
दरअसल, इससे पहले काशी की ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग होने का मामला अदालत में है और मथुरा की शाही ईदगाह का केस भी कोर्ट में लंबित है. बाबरी मस्जिद के बाद माना जा रहा था कि मंदिर-मस्जिद का विवाद शायद अब थम जाएगा, लेकिन एक के बाद एक नए मामले सामने आते जा रहे हैं, जिससे मुस्लिम समुदाय में अपनी इबादतगाहों काे लेकर बेचैनी देखी जा रही है. (Badaun Jama Masjid News )