तुर्की ने 7 अफ्रीकी देशों को दान कीं 21000 कुरान, ऐसे फैला था कभी इस्लाम

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बीते साल तुर्की के एनजीओ आईएचएच ह्यूमैनिटेरियन रिलीफ फाउंडेशन ने सात अफ्रीकी देशों को पवित्र कुरान की 21000 प्रतियां दान में दी थीं। कंपनी ने बयान जारी कर यह जानकारी दी। बयान में कहा गया है कि प्रिंटेड कुरान की कमी होने की वजह से अफ्रीका महाद्वीप के कई देशों के छात्र तख्तों या लकड़ी पर आयतों को लिखकर उनकी अहमियत बताने की कोशिश कर रहे थे, इस वजह से 2021 में सात देशों में 21 हजार से ज्यादा कुरान की प्रतियां तोहफा बतौर दी गईं। (Turkey Donated Qurans African)

जिन देशों में कुरान का उपहार दिया गया है, उनमें गिनी और माली में 13500 प्रतियां, शाद में 2900 प्रतियां, घाना में 2000 प्रतियां, नाइजर और सूडान में 2000 प्रतियां और सिएरा लियोन में 600 प्रतियां हैं।

IHH ने यह भी बताया है कि उन्होंने अब तक दुनिया भर में कुरान की 2 लाख 63 हजार से ज्यादा प्रतियां दान की हैं।

अफ्रीका वह महाद्वीप है, जिसमें इस्लाम दक्षिण-पश्चिम एशिया से 7वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व के दौरान फैला। दुनिया की लगभग एक तिहाई मुस्लिम आबादी अफ्रीका में रहती है। बताया जाता है, मुसलमानों ने उस दौर में जिबूती और सोमालिया को पार कर ईसाई साम्राज्य में रहे मौजूदा इरिट्रिया और इथियोपिया में पनाह ली थी। जब पैगंबर मुहम्मद ने मक्का में उत्पीड़न का शिकार हो रहे शुरुआती अनुयायियो को पनाह लेने के लिए लाल सागर के पार कर हिजरत की सलाह दी।

तेईस मुसलमान एबिसिनिया चले गए जहां राजा अरमा अन-नाजाशी ने संरक्षण दिया, जिन्होंने बाद में इस्लाम स्वीकार कर लिया। उसी साल बाद में 101 मुसलमान और पहुंचे। उन मुसलमानों में से ज्यादातर बाद में मदीना लौट आए, लेकिन कुछ आज के सोमालिया में बस गए। उन्होंने 627 में मस्जिद अल-क़िबलायन का निर्माण किया।

इस मस्जिद में दो क़िबले हैं, क्योंकि यह पैगंबर द्वारा क़िबला को यरुशलम से मक्का में बदलने से पहले बनाया गया था। उन्होंने कथित तौर पर अफ्रीका की सबसे पुरानी मस्जिद का निर्माण भी किया, जो कि इरिट्रियन शहर मासावा में है। मसावा में इस मस्जिद का क़िबला यरूशलम की ओर भी इशारा करता है, हालांकि अब ऐसा नहीं होता, कभी-कभार इस मस्जिद में मक्का की ओर क़िबला मानकर नमाज़ अदा की जाती है।

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641 में खलीफा उमर इब्न अल-खत्ताब के शासनकाल के दौरान मुस्लिम सैनिकों ने वर्तमान मिस्र पर कब्जा कर लिया और अगले साल मौजूदा लीबिया पर फतेह हासिल की। तीसरे मुस्लिम खलीफा उस्मान इब्न अफ्फान के शासनकाल के दौरान मुसलमानों ने मौजूदा ट्यूनीशिया में विस्तार किया। (Turkey Donated Qurans African)

उत्तरी अफ्रीका की विजय उमय्यद राजवंश के तहत जारी रही, जिसने मोरक्को के आसपास अल्जीरिया के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया। बाद के मुस्लिम सैनिक जिब्राल्टर के जलडमरूमध्य को पार करके यूरोप तक पहुंच गए। पश्चिम अफ्रीका में 10वीं शताब्दी के दौरान इस्लाम ने रफ्तार पकड़ी और शासकों ने इस्लाम को अपनाया।

इस्लाम तब व्यापार और शिक्षाओं के जरिए महाद्वीप के ज्यादातर हिस्सों में धीरे-धीरे फैल गया। इस अवधि के दौरान उत्तरी और पश्चिमी अफ्रीका के इन मुसलमानों को बड़े पैमाने पर यूरोपीय लोग मूर के नाम से जानते थे। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ज़ांज़ीबार सल्तनत के तहत इस्लाम मलावी और कांगो में गहराई से पैठ बना चुका था।

फिर अंग्रेज़ उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी की शुरुआत में कुछ मुस्लिम-भारतीय नागरिकों समेत भारत से गुलाम मजदूर बनाकर अफ्रीका में अपने उपनिवेशों में लाए, जिसने इस्लाम को एक और दिशा दी।

अफ्रीका में ज्यादातर सुन्नी मुसलमान हैं। यहां मौजूद इस्लाम का रूप अफ्रीकी देशों में विचारों, परंपराओं और जबान के हिसाब से कुछ खास है। इस महाद्वीप में इस्लाम की प्रथा स्थिर नहीं है, बल्कि प्रचलित सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों के चलते नया रूप दिखाई देता है। आमतौर पर अफ्रीका में इस्लाम अफ्रीकी सांस्कृतिक संदर्भों और विश्वास प्रणालियों के लिए सहज भी है, जिसमें प्राकृतिक परंपराओं का समावेश होता है।

2002 में यह अनुमान लगाया गया था कि अफ्रीका की आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा मुसलमान हैं। दक्षिण अफ्रीका में अल्पसंख्यक आप्रवासी आबादी के साथ उत्तरी अफ्रीका, हॉर्न ऑफ अफ्रीका, साहेल, स्वाहिली तट और पश्चिम अफ्रीका के अधिकांश हिस्सों में इस्लाम की बड़ी मौजूदगी है। (Turkey Donated Qurans African)


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