अपने त्रिवेंद्र की फ़ज़ीहत करने में जुटी है भाजपा और सरकार

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द लीडर देहरादून

उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बनाने के बाद कुर्सी से उतार कर भाजपा ने अपने दूसरे नेताओं को भी नीचा दिखाया लेकिन जिस तरह और जैसी फ़ज़ीहत त्रिवेंद्र सिंह की हो रही है वैसी अब तक किसी की नहीं हुई। तीरथ सिंह रावत को तो लगता है यही टारगेट देकर मुख्यमंत्री की कुर्सी भी विराजमान किया गया है। त्रिवेंद्र ने भी पहले आलाकमान के फैसले को हल्के से चुनौती दी लेकिन बाद में अपने ही नेताओं को कौरव सेना बता कर बड़ा पंगा ले लिया।
एक एक कर त्रिवेंद्र के फैसले पलट कर नए मुख्यमंत्री ने बार बार जताया भी कि त्रिवेंद्र गलत थे। त्रिवेंद्र के 125 पसंदीदा हीरे दायित्वो से मुक्त कर दिए गए। पहली खेप में उनके निजी स्टाफ की तरह काम करने वाले 5 दायित्वधारी सलाहकारों की ऐलानिया विदाई की गई अब शुक्रवार को 120 और की हनक उतारी गई। इनमें कई राज्यमंत्री की हैसियत के थे। कुछ तो छह दिन भी पद पर नहीं विराज पाए। त्रिवेंद्र ने तूफान की वजह बने विधानसभा के गैरसैण सत्र से पहले ही इन्हें पद बांटे थे। पिछली सरकार ने विभिन्न आयोगों, निगमों परिषदों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सलाहकार व अन्य पदों पर गैर सरकारी महानुभावों को नामित किया था। इनमें से करीब 80 महानुभावों को मंत्री, राज्यमंत्री स्तर या अन्य महानुभाव स्तर का दर्जा दिया गया था।  मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मार्च माह में गैरसैंण में विधानसभा सत्र शुरू होने से ऐन पहले भाजपा के कई नेताओं को दायित्वों से नवाजा था। 26 फरवरी को त्रिवेंद्र ने 17 लोगों को दर्जाधारी बनाया।  पहले भी कई को दायित्व दिया गया था। ऐसे में करीब सौ से अधिक दर्जाधारी (संवैधानिक पदों को छोड़कर) थे।

वैसे मुख्यमंत्री के हटते ही हट जाना चाहिए था। इसमें सरकारी फरमान निकालने की जरूरत ही नहीं थी लेकिन दुतरफा जिद की वजह से इनकी बाकायदा बैंड बजा कर विदाई हुई ताकि त्रिवेंद्र ठीक से समझ सकें और जनता भी। सल्ट के स्टार प्रचारकों की सूची में भी फ़ज़ीहत के बाद ही उनका नाम जोड़ा गया।
त्रिवेंद्र ने कुछ दिन पहले खुद कहा था कि नहीं पता उन्हें क्यों हटाया गया, क्यों अभिमन्यु की तरह मारा गया। अब उनके और जनता के सामने भाजपा और सरकार ने इतने कारण रख दिये हैं कि समझ में नहीं आ रहा कि ताबूद की आखिरी कील त्रिवेंद्र की कौन सी गलती थी।
कुम्भ का घोटाला और हीलाहवाली पहली वजह दिखी लेकिन बराबर के भागीदार मदन कौशिक को दूसरी तरह से नवाज कर भरमा दिया गया। खैर कुछ व्यवस्थाएं बदल कर जताया गया कि ये त्रिवेंद्र के बस का काम नहीं था। प्राधिकरणों को खत्म करना,गैरसैण मंडल का निर्णय लटकाना, उनके कुछ चहेते अफसरों का रुतबा गिराना ये सब बहुत समझा कर किया गया।
अब हरक सिंह त्रिवेंद्र के सवाल का जवाब दे रहे हैं कि उन्हें क्यों हटाया गया। कल हरक ने उनके घमण्ड की चर्चा कर कहा कि घमंड तो रावण का भी नहीं रहा। आज उन्होंने सवाल दागा की त्रिवेंद्र ने कौरव किसे कहा? क्या पार्टी के बड़े नेताओं को? तो क्या जो चंद लोग उनके साथ हैं वही पांडव है? त्रिवेंद्र शब्दवाणों से भेदे जा रहे हैं। हरक सिंह के जो काम त्रिवेंद्र ने रोके थे उन्हें मंजूरी मिल गई। त्रिवेंद्र के अफसर हटे, हरक के आ गए। ये मानसिक यंत्रणा भी पूर्व मुख्यमंत्री के लिए कम नहीं।

बताते हैं कि अब उनके कुछ सलाहकारों के कच्चे चिट्ठे पलटे जा रहे हैं। जिनमें से एक पर बड़ी संपतियां बनाने मीडिया संस्थान खरीदने और मुख्यमंत्री के नाम पर कई लाभ लेने के अलावा मनी लॉन्ड्रिंग का भी गंभीर आरोप है। ये सज्जन आजकल दिल्ली शिफ्ट हो गए हैं।
भाजपा सरकार के चार साल का जश्न पूरी तैयारियां करने के बाद रद्द करना भी त्रिवेंद्र को बुरी तरह आहत कर गया। इस संकट में त्रिवेन्द्र की पीड़ा जिस तरह बाहर आ रही है, वह उनकी मुसीबतें और बढ़ा सकती है। त्रिवेंद्र भी अब समझ रहे हैं कि उनकी पोल पट्टी रखने वाले नए हुज़ूर की शरण में जा चुके हैं इसलिए हरक के तीखे वाणों से आहत होकर भी उफ्फ नहीं कर रहे। उनके खास लोग भी समय देख कर किनारा क़रने लगे हैं।

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