मुगल साम्राज्य की सबसे ताकतवर औरत, जिसने औरंगजेब को शहंशाह के तख्त पर पहुंचाया

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मुगल बादशाह शाहजहां की बेटी रोशनआरा न होतीं तो शायद औरंगजेब को शाही तख्त कभी नसीब नहीं होता। उस तख्त तक पहुंचाने और औरंगजेब की सियासत को ऊंचाई पर पहुंचाने वाला ब्रेन रोशनआरा ही थीं, जिसकी बदौलत औरंगजेब की जान बची। आज ही के दिन 3 सितंबर 16़17 को उनका जन्म हुआ और 11 सितंबर 1671 को इंतकाल हुआ।

रोशनारा बेहद तेज दिमाग, चालाक, सियासी चाल चलने में माहिर थीं, जिसको कविताएं लिखने का भी शौक था। रोशनआरा ही थीं, जिन्होंने औरंगजेब को गद्दी तक पहुंचाने के लिए पिता के प्रिय दूसरे भाई दारा शिकोह को न सिर्फ ठिकाने लगवा दिया, बल्कि औरंगजेब के सम्राट बनने के बाद रोशनारा दरबार की प्रमुख महिला बन गई और हरम में मनमर्जी से हुकूमत चलाई।

1657 में शाहजहां की बीमारी के बाद हुए उत्तराधिकार के युद्ध के दौरान रोशनआरा ने औरंगजेब का समर्थन किया। 1658 में औरंगजेब ने सिंहासन पर बैठने के बाद रोशनारा को पादशाह बेगम की उपाधि दी। इसी के साथ वह मुगल साम्राज्य की पहली सबसे ताकतवर सियासी महिला बन गई।

उत्तरी दिल्ली में आनंद उद्यान है, जो कभी रोशनआरा के नाम पर रोशनआरा बाग हुआ करता था। इसी बाग के हिस्से में 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों कंट्री क्लब बनवाया।

रोशनआरा के चार भाइयों में सबसे बड़ा दारा शिकोह को शाहजहां तख्त ए ताऊस का उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। दूसरे बेटे शाह शुजा बंगाल के विद्रोही राज्यपाल थे। तीसरे बेटे औरंगजेब दक्कन का नाममात्र का राज्यपाल था। सबसे छोटे बेटे मुराद को गुजरात की गवर्नरशिप दी गई, लेकिन वह इतना इतना कमजोर साबित हुआ कि शाहजहां ने उससे उसकी उपाधियां छीनकर दारा शिकोह को दे दीं।

शाहजहां की इस तरह की कार्रवाइयों से छोटे बेटे चिढ़ गए और पारिवारिक संघर्ष शुरू हो गया, जिन्होंने बुजुर्ग शहंशाह को गद्दी से हटाकर सिंहासन को जब्त करने की ठान ली। इस सत्ता संघर्ष के दौरान दारा शिकोह को अपनी सबसे बड़ी बहन जहांआरा बेगम का समर्थन मिला, जबकि रोशनआरा बेगम ने औरंगज़ेब का साथ दिया।

रोशनारा का सत्ता में उदय तब शुरू हुआ जब उसने पिता और दारा शिकोह द्वारा औरंगजेब को मारने की साजिश को सफलतापूर्वक नाकाम कर दिया। इतिहास के अनुसार, शाहजहां ने औरंगजेब को दिल्ली आने को कहा, जिससे वह पारिवारिक संकट को शांतिपूर्वक हल कर सके।

असल में शाहजहां ने औरंगजेब को कैद करने और मारने की योजना बनाई थी, क्योंकि वह सिंहासन के लिए एक गंभीर खतरा महसूस होता था। जब रोशनआरा पिता की साजिशों की भनक लगी तो उसने औरंगजेब के पास एक दूत भेजा और औरंगजेब को दिल्ली से दूर रहने की चेतावनी भिजवाई।

औरंगजेब रोशनआरा की वक्त पर मिली चेतावनी के लिए बहुत शुक्रगुजार था। जब औरंगजेब के पक्ष में उत्तराधिकार का संघर्ष सुलझ गया, तो वह जल्दी ही दरबार में बहुत शक्तिशाली बन गई। इस डर से कि दारा शिकोह सत्ता में वापस आने पर उसकी भूमिका के लिए उसको मार डालेगा, रोशनारा ने ही जोर डाला कि औरंगजेब दारा को फांसी का हुक्म दे दे।

किंवदंती है कि दारा को जंजीरों में बांधकर चांदनी चौक के आसपास घुमाकर सिर कलम करा दिया गया। रोशनआरा ने फिर दारा के कटे हुए सिर को सोने की पगड़ी में लपेटा और बड़े करीने से पैक करके तोहफे के तौर पर पिता शाहजहां के पास भेज दिया। शाहजहां ने खाना खाने को बैठने से पहले पैकेट खोला तो अपने प्यारे बेटे के सिर को देखकर बेहोश होकर फर्श पर गिर पड़ा। घटना के बाद कई दिनों तक वह सदमे में रहा।

रोशनारा बड़ी बहन जहांआरा जलती थी, क्योंकि वह पिता की पसंदीदा बेटी थी। रोशनारा ने औरंगजेब का साथ देकर उसके खिलाफ भी जीत हासिल की। औरंगजेब बड़ी बहन से दारा का साथ देने को लेकर खफा था, इसलिए जब वह शहंशाह बना तो उसने जहांआरा से पादशाह बेगम और हरम की मुखिया होने का ओहदा छीनकर रोशनआरा को दे दिया।

यहां तक कि रोशनआरा को फरमान और निशान जारी करने का भी अधिकार दे दिया। एक मनसबदार के रूप में नियुक्त किया गया जो शाही सेना में बड़ा पद था, जिसका इस्तेमाल शहंशाह की गैर मौजूदगी में शासन करने के लिए रोशनआरा ने किया।

फिर वह वक्त भी आया जब रोशनआरा और औरंगजेब एक-दूसरे से अलग हो गए। कहा जाता है कि मुगल शहजादियों को अकबर के समय से ही अविवाहित रहने के लिए बाध्य किया गया जिससे उनकी संतान सिंहासन के लिए चुनौती न बने। रोशनारा के बारे में अफवाह थी कि उसका प्रेमी है, लेकिन औरंगजेब नहीं जानता था। वहीं रोशनआरा के भरोसे उसकी इच्छा के अनुसार शासन किया, साथ ही बाकी भाइयों और उनकी बीवियों से नफरत पैदा कर ली।

1662 में जब औरंगजेब अचानक गंभीर रूप से बीमार हो गया तो रोशनारा बेगम ने विश्वासपात्रों को छोड़कर किसी को भी उसे देखने की अनुमति नहीं दी। यह मानते हुए कि उनके भाई के जीवित रहने की कोई उम्मीद नहीं है, रोशनारा ने राज्य की कमान संभाल ली। जब नवाब बाई को यह पता चला और शिकायत की, तो रोशनारा इतनी गुस्से से भर गई कि उसे बालों से पकड़कर औरंगजेब के कक्ष से बाहर खींच लिया। वह अपने भाई की मौजूदगी के समय भी उसके द्वारा लिए गए निर्णयों में सक्रिय भागीदार थी।

कहते हैं, उसे सोने और जमीन से भी प्यार था और अक्सर भ्रष्ट तरीकों से बड़े पैमाने पर धन जमा किया। उसके खिलाफ गंभीर शिकायतें भी आईं, लेकिन दरबार में उसकी हैसियत की वजह से कोई मामला सुनवाई में ही नहीं आया। दक्कन में अपने लंबे सैन्य अभियान के लिए जाने से ठीक पहले औरंगजेब ने उसको जो विशेषाधिकार दिए, उसका रोशनआरा ने खुलेआम दुरुपयोग किया।

1668 में साम्राज्य के सह-शासक के रूप में रोशनारा की हैसियत खत्म हो गई, क्योंकि उसके दुश्मनों ने वित्तीय और अनैतिक कारनामों को औरंगजेब के सामने ला दिया। सख्त मुस्लिम औरंगजेब रोशनारा की स्वछंत जीवन शैली और उसके लालची स्वभाव पर भड़क गया। दिल्ली लौटने पर उसने रोशनारा से उसकी शक्तियां छीन लीं और दरबार से निर्वासित कर दिया। उसे एकांत में रहने और दिल्ली के बाहर अपने बगीचे के महल में जिंदगी गुजारने का हुक्म दे दिया।

औरंगज़ेब के रुख से रोशनारा डरती थी, इसलिए औरंगज़ेब से उसके लिए चारदीवारी से दूर एक महल बनाने के लिए कहा। घबराहट यहां तक हो गई कि उसने राजनीति से दूर रहने का फैसला किया। रोशनारा ने घने जंगल से घिरे दिल्ली में अपने महल में जीवन बिताने का फैसला किया।

उसने कभी शादी नहीं की और जीवन के अंत तक अपने महल में रही। अंतिम दिन बहुत तकलीफ में गुजरे। औरंगजेब ने उसको जहर देकर मारने का भी सोचा। आखिरकार 54 साल की उम्र में उसकी मौत हो गई। औरंगजेब ने उसे रोशनआरा बाग में दफन कराया, जिसका बगीचा खुद रोशनआरा ने ही डिजायन कराया था।


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