सुपर डीलक्स: रिश्तों को नया अर्थ देने का प्रयास

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      दिनेश श्रीनेत-

तमिल फिल्म ‘सुपर डीलक्स’ (2019) बीते कुछ सालों में नियो-नॉयर शैली में बनी कुछ बेहतरीन फिल्मों में से एक है। इस फिल्म में सिर्फ डार्क ह्यूमर ही नहीं है बल्कि यह एक असंगत यानी एबसर्ड फिल्म भी है। पूरी फिल्म में एब्सर्ड घटनाओं की भरमार है।

छुपकर मिलने और सेक्स के दौरान एक विवाहित युवती का पूर्व प्रेमी मर जाता है, अब वह और उसका पति न सिर्फ लड़-झगड़ रहे हैं बल्कि लाश को ठिकाने लगाने के लिए भी भागदौड़ कर रहे हैं। कई सालों के इंतज़ार के बाद एक महिला का पति घर लौटता है तो पता चलता है कि उसने अपना सेक्स चेंज करा लिया है।

पांच लड़के छुपकर पोर्न फिल्म देखने बैठते हैं तो उस फिल्म में नज़र आने वाली अभिनेत्री उसमें से एक लड़के की मां निकलती है। एक व्यक्ति सुनामी में बच जाता है तो उसको लगता है कि जीसस के स्टैच्यू के रूप में किसी ईश्वरीय ताकत ने उसे बचा लिया और अंध भक्ति मे डूब जाता है।

ये सारी कहानियां कहीं एक-दूसरे से जुड़ती हैं तो कहीं बहुत करीब से होकर निकल जाती हैं। फिल्म एक जगह कहती है, “धरती पर इतने खरबों लोग रहते हैं, ज़िंदगियां एक-दूसरे का रास्ता काटेंगी ही। एक के किए का असर दूसरे पर पड़ेगा ही।”

फिल्म में कई जगह हास्य मौजूद है मगर निर्देशक ने हंसाने का जरा भी प्रयास नहीं किया है। ज्यादातर सिचुएशन बहुत ही अटपटी, बिडम्बनापूर्ण और और कही जगह हिंसा या अनादर और वेदना से भरी हैं, मगर हास्य की एक महीन सी परत पूरी फिल्म पर छाई रहती है।

फिल्म में एक सुपरनैचुरल प्रसंग पूरी फिल्म के टोन को डिस्टर्ब करता है, नहीं तो यह फिल्म और भी बेहतरीन बन पड़ती। हर कहानी विरोधाभासों पर टिकी हुई है। निर्देशक ने पति-पत्नी, मां-बेटे, पिता और बेटे, दोस्तों के बीच रिश्तों को एबसर्ड सिचुएशन में रखते हुए उन्हें पुनर्परिभाषित किया है। उनको एक नया अर्थ और जीवन दृष्टि देने का प्रयास किया है।

एक छोटा बच्चा जो बरसों से अपने पिता का इंतज़ार कर रहा है, वह उसके बदले हुए रूप को भी स्वीकार कर लेता है और जब उसके दोस्त जेंडर बदले हुए उसके पिता का मजाक़ उड़ाते हैं तो वह उनसे पूछता है, “पापा मम्मियों जैसे क्यों नहीं दिख सकते?”

एक पोर्न वीडियो में काम करने वाली स्त्री कहती है, “एक फिल्म में मैंने देवी का रोल किया था। कोई मुझे देवी समझ सकता है, कोई मुझे वेश्या समझ सकता है।” फिल्म ट्रांसजेंडर की आंतरिक पीड़ा और उसके सामाजिक तिरस्कार को बहुत निर्मम ढंग से दर्शाती है।

‘सुपर डीलक्स’ में बहुत सारे ट्विस्ट और टर्न हैं, जिनका यहां जिक्र करने से मज़ा खराब हो सकता है। फिल्म के निर्देशक तियाकराजन कुमारराजा की आठ साल के अंतराल पर यह दूसरी फिल्म है, उन्होंने सन् 2011 में तमिल नियो-नॉयर थ्रिलर फिल्म ‘अरण्य कांडम’ से डेब्यू किया था।

यह थ्रिलर देखे जाने के बाद लंबे समय तक याद रह जाएगी, क्योंकि यह कुछ दार्शनिक नोट्स पर ख़त्म होती है, दिलचस्प यह है कि उसे भी एक सी-ग्रेड फिल्म के माध्यम से बयान किया गया है। फिल्म की शुरुआत और अंत में बप्पी लहरी की फिल्म ‘डिस्को डांसर’ का गीत सुनना भी दिलचस्प है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व फिल्म व साहित्य समीक्षक हैं)


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