क्या आपने 1325 हिजरी में मस्जिद-ए-नबवी में मौजूद 114 साल से भी पुराने बल्ब की तस्वीर देखी है? बल्ब पर लिखे हुई इबारत की मानें तो इस बल्ब के लगने की तारीख और अरब प्रायद्वीप में प्रवेश की तारीख एक ही है। (Bulb Of Masjide Nabwi)
मदीना नगर पालिका के अनुसार, ओटोमन शासक सुल्तान अब्दुल मजीद युग के दौरान मस्जिद-ए-नबवी का निर्माण और इसका विस्तार कार्यक्रम लगभग 1265 हिजरी 1277 हिजरी है।
उस वक्त मस्जिद में तेल के दिये का इस्तेमाल किया जाता था। सुल्तान अब्दुल मजीद ने 25 शाबान 1326 हिजरी को पहली बार इस बल्ब को लगवाने के बाद मस्जिद में बिजली की शुरुआत की। (Bulb Of Masjide Nabwi)
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किंग अब्दुल अजीज ने 1370 हिजरी से 1375 हिजरी के दौरान विस्तार कार्य शुरू कराया। उस समय मस्जिद-ए-नबवी में लगभग 2,427 बल्ब और लैंप की व्यवस्था के लिए एक बिजली संयंत्र स्थापित किया गया।
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मोहम्मद अल-सय्यद अल-वकील ने अपनी एक किताब में लिखा है कि एक जमाने में मस्जिद-ए-नबवी में रोशनी के लिए ताड़ के पत्तों को जलाया गया था। जब तमीन अल दारी फिलिस्तीन से 9 हिजरी के आसपास पहुंचे, तो उन्होंने तेल के दीये का बंदोबस्त किया। तमीन अल दारी मस्जिद-ए-नबवी में दीया जलाने वाले पहले व्यक्ति बने। (Bulb Of Masjide Nabwi)
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किताब में यह भी लिखा है कि कुछ लेखकों का दावा है कि पहला दीया उमर बिन अल खत्ताब ने जलाया था, जब लोग तरावीह की नमाज़ के लिए वहां जमा हुए थे।
यहां बता दें, बिजली के इस्तेमाल से रोशनी पैदा करने का ख्याल सबसे पहले अंग्रेज कैमिस्ट हंफ्री डेवी के मन में आया था। 200 साल पहले उन्होंने ही सबसे पहले ये दिखाया था की जब बिजली को तारों के जरिए भेजा जाए तब तार गर्म होकर रोशनी पैदा करते हैं।
उनके द्वारा तैयार के उपकरण कुछ घंटों तक ही जल पाते थे। इसके बाद अविष्कारक थॉमस एडिसन ने वह बल्ब बनाया जिससे दुनिया जगमग होने की ओर गई। उन्होंने 1879 में कार्बन फिलामेंट लाइट बल्ब बनाकर दुनिया को एक झटके में तरक्की की छलांग लगवा दी।
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