#speakagainst_sullideals: ये लड़ाई सिर्फ मुस्लिम महिलाओं की नहीं, महिलाओं की है

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Sulli Deals Muslim women

          डॉ. अमिता नीरव-


अमृता प्रीतम की ये पंक्तियां मुझे हमेशा याद रहती है कि ‘दुनिया की हर लड़ाई औरतों की छाती पर लड़ी जाती है।’ मैं इसमें जोड़ती हूं हर नफरत, हर तरह की संकीर्णता, हर तरह की कट्टरता का पहला शिकार औरतें होती हैं। इस देश में जहां बहुसंख्यक कथित तौर पर साल में दो बार औरतों की पूजा करता है, वहां #सुल्ली_डील_एप बनाया जाता है और उस पर कमाल ये है कि एक वेबसाइट का संस्थापक संपादक उसे सगर्व ट्वीट करता है।

ये वही लोग हैं जो साल में दो बार नवरात्र मनाते होंगे। नौ दिन व्रत भी करते होंगे और कन्या पूजन भी। यही लोग एप बनाते भी हैं और उसका प्रचार भी करते हैं। मैं पहले भी कहती रही हूं कि सत्ता की लड़ाई में औरतें हमेशा दोनों तरफ से इस्तेमाल होती हैं। अपने दोस्तों से भी इस सिलसिले में मैं कई बार लड़ चुकी हूं कि यदि आप किसी औऱ के साथ हो रहे गलत को गलत नहीं कहती हैं तो यह गलत आप तक भी आएगा। इस सिलसिले में मैं पिछले साल गार्गी कॉलेज वाली घटना भूल नहीं पाती हूं।


”सुल्ली डील्स एक ऑनलाइन एप है, जिसमें सोशल मीडिया से मुस्लिम लड़कियों या महिलाओं की तस्वीरें चुराकर ऑनलाइन नीलामी की बोली लगवाने की कोशिश हुई है। खबरों के अनुसार 100 से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें अपलोड करके नीलामी का प्रचार किया गया। इस बात का पता चला तो विरोध की आवाजें उठीं और इस मामले में कुछ एफआईआर भी दर्ज हुई हैं। देशभर में सांप्रदायिक भावना से किए जा रहे दुष्कृत्य में यह घटना भी शामिल हो गई है।”

– द लीडर हिंदी


मैं यह मानती हूं कि अपनी लड़ाई में औरतें अमूमन अकेली ही होती हैं। उसकी मदद करने कोई धर्म, कोई जाति, कोई संस्था, कोई राज्य, कोई परिवार नहीं आता है। कई उदाहरण अपने इर्दगिर्द देख-सुन चुकी हूँ कि यदि किसी स्त्री ने अपने साथ हुई अभद्रता की शिकायत परिवार में की है तो अच्छे-खासे पढ़े-लिखे औऱ आधुनिक परिवारों में सबसे पहला शक उस पीड़ित स्त्री पर किया जाएगा। पूरा समाज पितृसत्ता के कीचड़ में डूब उतरा रहा है। उस पर धर्मांधता की गंदगी अलग से है।

सुल्ली डील एप वाले मसले को आप कई एंगल से देख सकते हैं। सबसे पहला मुस्लिम महिलाओं को टारगेट किया जा रहा है। ये राष्ट्रवादी हिंदू धर्मांधता का सबसे गलीज रूप है। दूसरा इसमें उन पढ़ी-लिखी और सार्वजनिक जीवन में दमदारी से अपनी बात रखती महिलाओं को टारगेट किया जा रहा है जो हर तरह से सत्ता और समाज के पारंपरिक ढांचे में सेंध लगा रही हैं। इस एक तीर से कई शिकार किए जा रहे हैं।

इस सिलसिले में न जाने कहां से एक नई बहस आ गई है कि मुस्लिम महिलाओं को सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं रहना चाहिए, उन्हें अपनी फोटो नहीं डालनी चाहिए। मतलब इस निहायत ही घटिया हरकत के खिलाफ महिलाओं के साथ आने की बजाए उन्हें ही नसीहत दी जा रही है? यह बहुत खराब बात है, लेकिन अपनी बात को ताकत से कहती महिलाएं चाहें इस तरफ की हो या उस तरफ की पुरुषों की सत्ता के लिए खतरा है।

इसलिए ये लड़ाई सिर्फ मुस्लिम महिलाओं की नहीं है, ये लड़ाई महिलाओं की है। उस समाज से जिसकी नींव उनके बोलने-कहने, हंसने, घूमने यहां तक कि उसके स्वतंत्रता से सांस लेने से दरकती है। ये लड़ाई सिर्फ आज के लिए नहीं है, यह आने वाले वक्त के लिए भी है। ये लड़ाई किसी एक की नहीं है, ये लड़ाई हमारी है, आपकी भी औऱ मेरी भी। यदि आज इसका विरोध नहीं किया तो कल आपकी भी बारी आ सकती है।

(यह लेखिका के निजी विचार हैं, फेसबुक वॉल से साभार)


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