तीन महीने में नहीं लगा सबके कोरोना का टीका तो नई मुसीबत में पड़ेगी दुनिया

0
357
आशीष आनंद

भारत में ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों में कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए टीकाकरण अभियान चल रहे हैं या फिर शुरू होने वाले हैं। कई तरह की वैक्सीन अलग-अलग देशों की सामने आई हैं, जिनके असर को लेकर सवाल जवाब हो रहे हैं। नए वैरिएंट की वजह से भारत से सप्लाई की गई कई लाख खुराक वापस भी आ गई, क्योंकि नए वैरिएंट पर भेजी गई वैक्सीन का असर नहीं हो रहा।

इस बीच इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईवीआरआई) की महामारी डिवीजन के मुखिया प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ.बीआर सिंह का शोध “रिसर्च गेट” पर प्रकाशित हुआ है। उन्होंने अपने ब्लॉग “आजाद इंडिया” पर भी कुछ तथ्यों के साथ ऐसी बात रखी है जो मौजूदा टीकाकरण अभियान पर सवालिया निशान लगा रहे हैं।

उनका कहना है कि टीकाकरण गलत नहीं है, लेकिन अंधी दौड़ और ज्यादा मुसीबत में डाल सकती है। विज्ञान को अनदेखा कर ऐसी कोशिशें खास फायदेमंद नहीं हो सकतीं।

यह भी पढ़ें: इस तारीख और साल से पहले पैदा होने वालों के लगेगा कोरोना का टीका

डॉ. सिंह ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी वैक्सीन को लेकर ट्वीटर पर सवाल किया। इस पर डब्ल्यूएचओ का जवाब भी गौर करने लायक है।

बीआर सिंह: How long does protection from vaccines or antibodies last?

(वैक्सीन से कितने समय तक सुरक्षित रहा जा सकता है या एंटीबॉडीज बनती हैं?)

डब्ल्यूएचओ: It’s too early to know if COVID-19 vaccines will provide long-term protection. Additional research is needed to answer this question.

Available data suggests that most people who recover from COVID-19 develop an immune response that provides at least some protection against reinfection – although we’re still learning how strong this protection is, and how long it lasts.

It’s also not yet clear how many doses of a COVID-19 vaccine will be needed. Most COVID-19 vaccines being tested now are using two dose regimens.

(कोविड-19 वैक्सीन से लंबे समय तक सुरक्षा मिलेगी, यह जान पाना अभी जल्दबाजी होगी। मौजूदा डाटा बताता है कि कोविड-19 से उबर चुके ज्यादातर लोगों की इम्युनिटी से एक हद तक दोबारा संक्रमण से हिफाजत हुई है। हालांकि, हम अभी भी यह जानने की कोशिश ही रहे हैं कि यह कितनी मजबूत सुरक्षा है और कब तक बनी रहेगी। यह भी अभी तक साफ नहीं है कि कोविड-19 टीकों की कितनी खुराकों की जरूरत है। ज्यादातर वैक्सीनों को अभी तक दो खुराकों के हिसाब से परखा गया है।)

तब क्या है कोविड-19 पर नियंत्रण का सबसे अच्छा विकल्प

सीनियर माइक्रोबायोलाॉजिस्ट डॉ.बीआर सिंह 15 बिंदुओं में तथ्य गिनाकर कहते हैं, ”तब तक कोई टीकाकरण नहीं होना चाहिए जब तक कि हम एक ही बार में तीन महीने की छोटी अवधि के भीतर पूरी दुनिया का टीकाकरण करने के लिए तैयार न हों।”

डॉ.सिंह का कहना है, किसी तय अंतराल पर हर्ड इम्युनिटी रखना जरूरी है, अन्यथा अतीत में महामारी विज्ञान के अध्ययनों ने साबित किया है कि आंशिक झुंड-प्रतिरक्षा रोग नियंत्रण रणनीति में और ज्यादा खतरनाक है। इसकी वजह है कि यह स्थिति रोगजनक क्षमता में वृद्धि के साथ वैरिएंट और म्यूटेंट पैदा करने की ओर जाती है।

पिछले 3-4 महीनों में कोविड-19 के ज्यादा खतरनाक वैरिएंट के तेजी से प्रसार ने भी यही साबित किया है। आधे-अधूरे या मध्य-मार्ग के नजरिए से यही होता है कि रोग स्थानीय महामारियों के रूप में जब-तब फूटता है।

यह भी पढ़ें: इन वैज्ञानिकों ने उठाए कोरोना वैक्सीन पर बड़े सवाल, जानिए टीके से जुड़ी हर बात

इन पंद्रह बिंदुओं के आधार पर निकाला नतीजा

1. आमतौर पर घातक रोग नहीं है तो अधिकांश रोगों के प्राकृतिक संक्रमण के बाद हमेशा किसी भी अच्छे टीके के मुकाबले लंबे समय तक प्रतिरक्षा पैदा होती है। इस तरह ज्यादातर वैरिएंट के खिलाफ क्रॉस-सुरक्षा भी मिलती है, जबकि टीका अक्सर इस मोर्चे पर विफल रहता है।

2. टीके उन लोगों को जोखिम में डाल सकते हैं जो या तो संक्रमण के संपर्क में नहीं आए हैं या जिन्हें संक्रमण होने की कोई संभावना नहीं है। हालांकि, प्राकृतिक संक्रमण से यह दर बहुत कम होती है।

3. कोविड-19 वैक्सीन में से किसी का टैस्ट लंबे समय तक सुरक्षा, स्थिरता, शक्ति और प्रतिरक्षा बने रहने के लिहाज से नहीं किया गया है। हां, अल्पकालिक अध्ययन ने उन्हें सुरक्षित दिखाया है। विशेष लक्षित समूहों को केंद्रित कर कोई परीक्षण नहीं करना चाहते हैं, जैसे कि बच्चे, बच्चों के भविष्य और दिव्यांगों को लेकर।

4. कोविड-19 के अमूमन सभी टीके आनुवांशिक रूप से संशोधित (मोडीफाइड) हैं, फिर भी बाजार में उतार दिए गए हैं (जल्दबाजी में बाजार में-हॉट-केक की मांग को देखते हुए) और फिर बिना किसी अड़चन हमारे शरीर में उन्हें डालने को जिम्मेदार संस्थाएं, सरकारें और अफसर वकालत कर रहे हैं।

जबकि, मानवी जीन या पर्यावरण का जोखिम कम होने के बावजूद आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थ (जीएम फूड्स) को अभी भी ज्यादातर देशों में खाने की अनुमति नहीं है। यह दरअसल जीएम प्रकार के आधे-अधूरे परीक्षण किए गए टीकों की शॉर्ट कट अनुमति है, जो भविष्य में जीएम खाद्य पदार्थों की खुलेआम मंजूरी का रास्ता तैयार कर सकते हैं।

5. दुनिया के अधिकांश गरीब लोगों के लिए कोविड-19 वैक्सीन सस्ती नहीं है और इससे कम कीमत शायद ही हो।

6. वैक्सीन के बारे में कोई भी कुछ नहीं जानता और न ही किसी टीके को बाकी से ज्यादा असरदार होने की मंजूरी मिली है। फिर भी ऐसे लगभग आधा दर्जन टीके दुनिया के बाजार में आ चुके हैं। इसका सीधा मतलब है कि सभी टीका या तो समान रूप से प्रभावी हैं या समान रूप से अप्रभावी हैं, या फिर दोनों ही दावे गलत हैं।

7. किसी भी वैक्सीन का इस्तेमाल न तो झुंड प्रतिरक्षा यानी हर्ड इम्युनिटी पैदा करने के लिए किया जा रहा है (टीकाकरण कार्यक्रम कार्यान्वयन से जाहिर है) और न ही आम जनता की सुरक्षा के लिए। अलबत्ता, कुछ निजी सुरक्षा की खातिर दवा बाजार को लाभ जरूर पहुंचा सकते हैं।

8. यह दावा किया जाता है कि बूस्टर खुराक के बाद कोविड-19 वैक्सीन की प्रतिरक्षा तीन से दस महीने तक रह सकती है। संभवत: कोई भी देश इस अवधि में अपनी आबादी का टीकाकरण नहीं कर पाएगा, भले ही लोग उसका खर्च उठा लें। लगभग सभी बड़े और गरीब देशों के लिए यह असंभव है। इसका मतलब है, आज मौजूद पीढ़ी के पास कोविड-19 से इम्यून हो चुके समुदाय या दुनिया पाने का कोई मौका नहीं है।

9. दुनिया में कोविड-19 वैक्सीन की आपूर्ति कम है और इसी तरह ही बने रहने की उम्मीद है।

10. कोविड-19 टीकों के रखरखाव के लिए जरूरी कोल्ड चेन दुनिया के अधिकांश हिस्सों में नहीं है, इस तरह टीका और टीकाकरण दोनों का विफल होना निश्चित है।

11. कई विकसित और शिक्षित देशों तक के ज्यादातर लोग टीकाकरण के लिए अनिच्छुक हैं, ऐसे में झुंड प्रतिरक्षा हासिल होने का कोई सवाल ही नहीं उठता।

12. पता लग जाने वाले 1000 संक्रमित लोगों में बमुश्किल 15 ही, जिनके टीका नहीं लगा है, बीमार महसूस करते हैं। इस तरह के 100 बीमार लोगों में से तीन से चार को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होती है। अस्पताल में भर्ती होने वालों में से 3 से 5 प्रतिशत की कोविड-19 से मौत हो जाती है।

यह गणित क्या बताता है? यही कि संक्रमण की जद में आने के बाद कोविड-19 के कारण लगभग 10 लाख लोगों में से 300-400 लोगों की मौत की संभावना है।

13. कोविड-19 वैक्सीन लगवाने वाले हर दस लाख लोगों में तीन से पांच लोगों की एनाफिलेक्सिस के कारण मौत को कारण माना जाता है, जबकि वैक्सीन के बजाय कोविड से होने वाली मौतें इतने ही लोगों के बीच लगभग 1 प्रतिशत हैं।

कोविड टीकों की अन्य समस्याएं और जटिलताएं उच्च आवृत्ति में होती हैं, जो सामान्य तौर पर इम्यून होने पर कभी भी नहीं हो सकती हैं, अगर आप पहले संक्रमण से बचने के बाद संक्रमित हो भी जाते हैं। ऐसा इसलिए कि प्रत्येक संक्रमण बाद में बूस्टर जैसा काम करता है।

14. कोविड-19 वायरस के म्यूटेंट या वैरिएंट का सृजन आंशिक रूप से प्रतिरक्षित हो चुकी आबादी की भूमिका की ओर इशारा है। एक दिन आएगा जब सभी मौजूदा कोविड-19 वैक्सीन एंटीबायोटिक की तरह लगभग बेकार हो जाएंगे।

हालांकि, बाजार चलाने वाली ताकतों ने जिस तरह एंटीबायोटिक बाजार को बनाए रखा है, उसमें अभी भी सबसे बड़ा दवा बाजार काफी हद तक बेकार, अनुपयोगी, नकली और घटिया कोविड -19 टीकों की मांग को बनाए रख सकता है।

इसका सबूत यह है कि उच्च प्रसार, रुग्णता और मृत्यु दर के साथ बीमारी के प्रमुख कारण के रूप में कुछ वैरिएंट्स उभरने के बाद पहले से ही मौजूद टीके फ्री या कम दाम पर उपलब्ध हो रहे हैं।

15. मानव समाज हजारों बीमारियों के बावजूद जिंदा रहा है और रहेगा, जबकि उन बीमारियों के टीके भी नहीं हैं।

इन पांच बिंदुओं को पढ़ने और सच्चाई को स्वीकारने के बाद सवाल उठता है कि टीके को अक्लमंदी से इस्तेमाल करने के लिए क्या किया जाना चाहिए? इस पर डॉ.सिंह कुछ सुझाव देते हैं।

वरिष्ठ सूक्ष्म जीव विज्ञानी डॉ. बीआर सिंह के पांच सुझाव

1. टीका लगाने से पहले मौके पर मौजूद लोगों के बीच प्रतिरक्षा एंटीबॉडीज परखने को रैपिड टेस्ट करने चाहिए।

2. जो लोग कोविड-19 संक्रमण से उबर चुके हैं और उनमें सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा है, लिहाजा उन्हें टीका न लगाकर कीमती खुराक बचाना चाहिए। इस तरह बेहतर एंटीबॉडी प्रतिक्रिया वाले लोगों में एडेनोवायरस वैक्सीन (कोविशिल्ड / एस्ट्राजेनेका) से थक्के बनने की संभावनाएं भी न के बराबर होंगी।

3. जिन लोगों में सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा है, उन्हें मास्क से आजादी देकर कहीं भी आने-जाने की अनुमति मिलना चाहिए, जिससे वे प्रतिरक्षा बरकरार रखने को कुदरती बूस्टर हासिल कर सकें।

4. संक्रमण के बाद रिकवर हुए या टीकाकरण से इम्यून लोगों को ही केवल दफ्तरों और सार्वजनिक जगहों पर काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए, जो शायद चुनावी राज्यों के लिए तो असंभव ही है।

5. सभी दुकानदारों, फेरीवालों, मजदूरों, बैंक कर्मचारियों, पशु चिकित्सकों को प्राथमिकता पर टीका लगाया जाना चाहिए। वास्तव में, ये सभी फ्रंट लाइन पर काम करने वाले लोग हैं।

चिकित्साकर्मी और पुलिसकर्मी भी फ्रंट लाइन कार्यकर्ता हैं, लेकिन वे हालात को संभालने, खुद के बचाव और संक्रमण फैलने से रोकने को लेकर संजीदा हैं, प्रशिक्षित भी हैं।

(आप हमें फ़ेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here