भारत में तर्कशील आंदोलन को संगठनबद्ध करने वाले बसावा प्रेमानंद का आज की तारीख, यानी चार अक्टूबर 2009 में देहांत हुआ था। कौन थे बसावा प्रेमानंद, यह उत्तर भारतीय कम ही जानते हैं। लेकिन उनकी मुहिम से जुड़कर आज देश में खामोशी एक आंदोलन उठ खड़ा हुआ है। ऐसा आंदोलन, जिससे झूठ, फरेब, पाखंड की बुनियाद पर समाज को पीछे धकेलने वाले घबराते हैं। ऐसे लोगों की विज्ञान के आधार पर पोल खोलने के साथ ही यह आंदोलन संविधान के हवाले से बहुत से बदलाव की कोशिश कर चुका है, जिसके चलते कई कट्टरपंथियों ने कुछ की हत्या भी कर दी। डॉ.नरेंद्र दाभोलकर की हत्या इसी वजह से हुई। (Rationalist Basava Premanad)
आधुनिक तर्कशील आंदोलन के जनक कहे जाने वाले अब्राहम टी कोवूर के बाद बसावा प्रेमानंद ने इस अभियान की कमान संभाली, खासतौर पर भारत में। डॉ.कोवूर ने दशकों पहले कुछ चैलेंज दिए थे दुनियाभर के पीर-फकीर, ज्योतिषी, सिद्ध पुरुषों, बाबाओं, जादूगरों को कि इनमें से कोई एक भी काम कर दें तो उनको नकद इनाम दिया जाएगा। यह चैलेंज बाद में बसावा प्रेमानंद ने और उनके आंदोलन से जुड़ी तमाम तर्कशील संस्थाओं ने जारी रखा है। नकद इनाम की रकम करोड़ों में पहुंच चुकी है। चैलेंज स्वीकार कर कुछ आए भी, लेकिन कामयाब कोई नहीं हो सका।
यह हैं तर्कशील आंदोलन के चैलेंज
1. भूत-प्रेत, जिन्न साबित करने वाले को।
2. तांत्रिक, स्याणा (घुड़ल्या) झाड़-फूंक द्वारा शक्ति दिखाना।
3. किसी शक्ति द्वारा किसी भी व्यक्ति पर मूठ (चौकी) छोड़ना।
4. किसी भी गंडा, ताबीज, लोकेट, अंगूठी आदि द्वारा शक्ति दिखाना।
5. नजर, टोक लगाने व उतारने वाले को।
6. यंत्र, मंत्र, तंत्र, द्वारा कोई भी शक्ति साबित करने वाले को।
7. गुम हुई वस्तु को खेज सके।
8. पानी को शराब/पेट्रोल में बदल सके।
9. पानी के ऊपर पैदल चल सके।
10. योग/देव शक्ति से हवा में उड़ सके।
11. सील बंद नोट का नंबर पढ़ सके।
12. ताला लगे कमरे में से शक्ति से बाहर आ सके।
13. अपने शरीर को एक स्थान पर छोड़ कर किसी दूसरे स्थान पर प्रकट हो सके।
14. जलती हुई आग पर अपने देवता की सहायता से 1 मिनट तक खड़ा हो सके।
15. ऐसी वस्तु जिसे मांगें, उसे हवा में से प्रस्तुत कर सकता हो।
16. प्रार्थना, आत्मिक शक्ति, गंगा जल, या पवित्र राख (भभूत) से अपने शरीर के अंग को पांच इंच बढा सकता हो और शरीर का भार (वजन) बढा सकता हो।
17. पुनर्जन्म के कारण कोई अद्भुत भाषा बोल सकता हो।
18. ऐसी आत्मा या भूत-प्रेत को पेश कर सके, जिसकी फोटो ली जा सकती हो और फोटो लेने के बाद फोटो से गायब हो सकता हो। ऐसे ज्योतिषी जो यह कहकर लोगों को गुमराह करते हैं कि ज्योतिष और हस्त रेखा एक विज्ञान है, उपरोक्त ईनाम को जीत सकते हैं, यदि वे दस हस्त चित्रों व दस ज्योतिष पत्रिकाओं (जन्म कुण्डली) को देखकर आदमी और औरत की अलग-2 संख्या व जन्म का ठीक समय व स्थान अक्षांस रेखा के साथ बता दें। (Rationalist Basava Premanad)
भारतीय तर्कवादी आंदोलन के प्रवर्तक बी प्रेमानंद ने 4 अक्टूबर 2009 को तमिलनाडु के पोदन्नूर में 79 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। उनकी इच्छा के अनुसार उनका पार्थिव शरीर स्थानीय मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया गया।
17 फरवरी, 1930 को कोझीकोड (केरल) में जन्मे प्रेमानंद बचपन में भी असामान्य घटनाओं के गहराई से समझने की कोशिश करते थे। किशोरावस्था में उन्होंने आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि हासिल करने को कई स्वामी और गुरुओं से संपर्क किया, लेकिन जल्द ही उनका भ्रम टूट गया जब पता चला कि वे पाखंड करते थे।
1969 में प्रेमानंद की मुलाकात श्रीलंकाई तर्कवादी डॉ. अब्राहम कोवूर से हुई, जो “चमत्कारों का पर्दाफाश” व्याख्यान दौरे के लिए भारत में थे। यह प्रेमानंद के जीवन का अहम मोड़ था, जो आध्यात्मिक चालबाजों को भगाने के अभियान में मील का पत्थर साबित हुआ।
1978 में डॉ. अब्राहम कोवूर के देहांत के बाद्र प्रेमानंद ने कोवूर की प्रसिद्ध चुनौती को जारी रखा, जो धोखाधड़ी-सबूत शर्तों के तहत मानसिक क्षमताओं का प्रदर्शन करने वाले किसी भी व्यक्ति को एक लाख रुपये की पेशकश कर सकता है। (Rationalist Basava Premanad)
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तीन दशकों से ज्यादा समय तक प्रेमानंद ने भारत के तमाम गांव और कस्बों का दौरा किया और पांखडी संतों और उनके चमत्कारों का पर्दाफाश किया, शिक्षितों और आम लोगों के लिए विज्ञान कार्यशालाओं का आयोजन किया, सार्वजनिक व्याख्यान और प्रदर्शन दिए।
उन्होंने तर्कशील सोच फैलाने के मिशन के साथ लगभग 49 देशों का दौरा किया। वैज्ञानिक जागरूकता फैलाने के उनके प्रयासों के लिए उन्हें भारत सरकार के राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद ने फैलोशिप दी।
प्रेमानंद का सबसे सनसनीखेज पर्दाफाश पुट्टपर्थी साईं बाबा की पोल खोलना रहा। एक बार उन्होंने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में साईं बाबा के खिलाफ इंडियन गोल्ड कंट्रोल एक्ट के तहत एक दीवानी रिट याचिका भी दायर की थी। वह चाहते थे कि सरकार साईं बाबा के खिलाफ ‘हवा से सोना बनाने’ के दावे और चमत्मकार पर कार्रवाई करे, क्योंकि यह गोल्ड कंट्रोल एक्ट की धारा 11 का उल्लंघन था, जिसमें सोने के निर्माण के लिए गोल्ड कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेटर की अनुमति अनिवार्य थी।
यह देखते हुए कि भारतीय समाज के सभी वर्गों में संतों का दबदबा है, यह बिल्कुल भी आश्चर्य की बात नहीं है कि इस मामले को अदालत ने खारिज कर दिया।
प्रेमानंद ने 6 जून 1993 को साईं बाबा के आश्रम में छह व्यक्तियों की कुख्यात हत्या पर अभिलेखों का एक विशाल संग्रह संकलित किया है और इसे 800 से अधिक पृष्ठों की किताब (साईं बाबा के बेडरूम में हत्या) को प्रकाशित किया। यह पुस्तक उन लोगों के लिए बेहतरीन तथ्य संग्रह है, जो आश्रम में संदिग्ध व्यवहार के पीछे की सच्चाई जानना चाहते हैं।
दो दशकों से ज्यादा समय तक प्रेमानंद ने तर्कवाद और वैज्ञानिकता के प्रसार को समर्पित मासिक पत्रिका ‘इंडियन स्केप्टिक’ प्रकाशित की। यह पत्रिका बेहिसाब धार्मिक देश में विभिन्न तर्कवादी समूहों और व्यक्तियों के बीच अमूल्य थी।
स्केप्टिक बुक क्लब’ के माध्यम से उन्होंने संतों और उनकी हरकतों को उजागर करने वाली कई किताबें निकाली। उनकी सबसे लोकप्रिय पुस्तक, साइंस वर्सेस मिरेकल, लगभग 150 “चमत्कारों” की प्राकृतिक व्याख्या देती है, जिनमें भारत में आमतौर पर भगवानों द्वारा किए जाने वाले चमत्कार शामिल हैं।
नवंबर 2006 में प्रेमानंद को कैंसर का पता चला और उनकी एक बड़ी सर्जरी हुई। बावजूद इसे उन्होंने अपने मिशन को जारी रखा। सर्जरी कराने के कुछ ही हफ्ते बाद प्रेमानंद ने जनवरी 2007 में बैंगलोर में तर्कवादियों की एक बैठक में भाग लिया, जब बैंगलोर विचारवादी संघ (बैंगलोर रैशनलिस्ट एसोसिएशन) की स्थापना हुई थी।
उन्होंने फेडरेशन ऑफ इंडियन रेशनलिस्ट एसोसिएशन (FIRA) के छठे राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया, जिसके वे संस्थापक-संयोजक थे। अप्रैल 2007 में पुणे में आंध्रश्रद्धा निर्मूलन समिति, महाराष्ट्र ने भारत में तर्कवादी आंदोलन में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया। दिसंबर 2007 में तिरुवनंतपुरम में आयोजित केरल युक्तिवादी संगम (केरल तर्कवादी संघ) के 25वें राज्य सम्मेलन में भाग लिया। (Rationalist Basava Premanad)
प्रेमानंद ने 2008 के अंत तक एक भी मिशन को आगे बढ़ाने का एक भी मौका नहीं छोड़ा। हर महीने इंडियन स्केप्टिक को प्रकाशित करना जारी रखा और अपने स्केप्टिक बुक क्लब के माध्यम से तर्कवाद पर पुस्तकें प्रकाशित करते रहे।
यहां तक कि खराब स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने 5 मार्च 2009 को तमिलनाडु के पोदन्नूर में विज्ञान की विधि पर एक स्थायी प्रदर्शनी को पूरा कराया और सार्वजनिक रूप से खोला। मैंगलोर की उनकी अंतिम यात्रा जुलाई में हुई थी जब उन्होंने साथी तर्कवादियों और विचारकों के साथ बातचीत की थी
तर्कवादी विश्वासों पर उनकी प्रतिबद्धता अब एक प्रेरक दस्तावेज है, जो कई तर्कवादी और विज्ञान से जुड़ी वेबसाइटों और पत्र-पत्रिकाओं में मौजूद हैं।
स्रोत: इंडियन स्केप्टिक
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