क्या आपने कभी सुना है कि एक देश में चुनाव हो और दूसरे देश में प्रचार हो…. शायद नहीं लेकिन लगता है कि इस बार बंगाल के चुनाव में कुछ ऐसा ही होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना महामारी शुरू होने के करीब एक साल बाद अपनी विदेश यात्रा का आगाज़ करने जा रहें हैं । वह सबसे पहले बांग्लादेश जाएंगे । अब आपका सवाल होगा कि इस यात्रा से बंगाल चुनाव का क्या सम्बन्ध? लेकिन राजनीतिक समझ रखने वाले लोग इस यात्रा का राजनीतिक निहितार्थ भी निकाल रहे हैं। उसकी कोई वजह भी है।
कोरोना महामारी शुरू होने के करीब एक साल बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी महीने से अपनी विदेश यात्रा की शुरूआत कर रहें हैं। पश्चिम बंगाल और असम में जिस दिन मतदान होना है उससे ठीक पहले प्रधानमंत्री के बांग्लादेश दौरे के चुनावी मायने भी निकाले जा रहे हैं। पीएम मोदी उस समय बांग्लादेश का दौरा कर रहे हैं जब वह अपनी आजादी की 50वीं साल गिरह मना रहा है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पीएम मोदी मतुआ समुदाय के धर्मगुरु हरिचंद्र ठाकुर की जन्मस्थली और तीर्थस्थल पर जाएंगे। प्रधानमंत्री अपने इस दौरे पर सुगंधा शक्तिपीठ और ओरकंडी मंदिर सरीखे धार्मिक स्थल भी जा सकते हैं। अब ऐसे में इस दौरे को बंगाल और असम के दौरे के चुनाव से जोड़कर भी देखा जा रहा है। 27 मार्च को बंगाल की 30 और असम की 47 सीटों पर वोटिंग होनी है।
बीजेपी के लिए क्यों खास है दौरा ?
पीएम मोदी का बांग्लादेश दौरा बीजेपी के लिए बेहद खास है. पीएम मोदी के इस दौरे से मतुआ समुदाय को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है। दरअसल बांग्लादेश की आजादी से पहले बड़ी आबादी पश्चिम बंगाल आ गई थी। इसमें काफी संख्या में मतुआ समुदाय के लोग भी शामिल हैं। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने इस दौरे पर मतुआ समुदाय को साधने की कोशिश करेंगे। बंगाल में मतुआ समुदाय को सत्ता की चाभी माना जाता है। इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि इस समुदाय का राज्य की 21 सीटों पर सीधा प्रभाव है। साल 1947 के बाद जब लोग आए तो वह पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और नदिया में आ कर बसे।
कौन हैं मतुआ समुदाय से संबंध रखने वाले लोग ?
धर्म गुरु हरिचंद ठाकुर के वंशजों ने मतुआ संप्रदाय की स्थापना की थी। बताया जाता है कि पूर्वी पाकिस्तान से संबंध रखने वाले मतुआ समुदाय के लोग बांग्लादेश के गठन के बाद पश्चिम बंगाल के हिस्सों में आ गए थे। इनमें से कई ने भारत की नागरिकता प्राप्त कर ली है, जबकि काफी संख्या में इस समुदाय के लोगों के पास नागरिकता नहीं है ।
इन लोगों का रुझान एक समय पे पूर्ण तरीके से बीजेपी की तरफ हुआ करता था लेकिन 2019 में CAA और NRC आने के बाद मतुआ समाज को अपनी नागरिकता खोने का डर हो गया क्योंकि बीजेपी हमेशा से कहती आई है कि सीएए-एनआरसी लागू होने के बाद ऐसे लोगों को देश छोड़ना होगा। यही वजह है कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मतुआ समाज का खुला समर्थन करने मैदान में उतर चुकीं हैं और प्रधानमंत्री भी बांग्लादेश के दौरे में कहीं ना कहीं मतुआ समाज का दिल जीतने का प्रयास करते दिख रहें हैं।
सीएम ममता ने सीएए, एनआरसी और एनपीआर को लेकर करीब महीना भर पहले एक रैली में विरोध जताया और नदिया जिले की मतुआ आबादी का हवाला देते हुए कहा कि सभी शरणार्थियों को भूमि का अधिकार दिया जाएगा और कोई उन्हें देश से बाहर नहीं कर सकता। नदिया जिले में इस समुदाय की आबादी करीब 40 फीसदी है।
सीएए पर निशाना साधते हुए ममता बनर्जी ने कहा, ‘ राज्य की सभी शरणार्थी कालोनियों को पश्चिम बंगाल सरकार ने नियमित कर दिया है। प्रत्येक शरणार्थी परिवार को भूमि अधिकार प्रदान किया गया है। हमने इस संबंध में प्रक्रिया शुरू की है और कई परिवार इसका लाभ उठा चुके हैं ।’
चुनाव में मतुआ समाज की एहमियत समझें
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राज्य के नदिया और उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिले की 70 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर मतुआ समुदाय की पकड़ मानी जाती है। गौरतलब है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इस समुदाय के लोगों ने बड़ी संख्या में वोट दी थीं। इसलिए 24 परगना में इस समुदाय को लुभाने के लिए बीजेपी और टीएमसी की जो आजमाइश जारी है। नदिया में विधानसभा की 17 और उत्तर और दक्षिण 24 परगना में 64 सीटें हैं।