दमदमे में दम नहीं अब खैर जानो जान की, ऐ जफर ठंडी हुई शमशीर हिंदुस्तान की….। 1857 में जब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहली बगावत नाकामयाब हो गई और आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर गिरफ्तार कर लिए गए तो अंग्रेज अफसर ने शायराना अंदाज में ये तंज किया। (Jallianwala Bagh Massacre)
उस अफसर को जवाब भी मिला। बहादुर शाह जफर ने कहा, ‘गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की’…। इस वाकये के 83 साल बाद बहादुर शाह जफर की ये बात 13 मार्च 1940 को सही साबित हुई। (Jallianwala Bagh Massacre)
ऊधम सिंह जलियांवाला बाग हत्याकांड के प्रत्यक्षदर्शी थे, तब वो 30 साल के नौजवान थे। वो बाग में मौजूद आंदोलनकारियों को पानी पिलाने की सेवा कर रहे थे, जब जनरल डायर ने नरसंहार का हुक्म दिया।
वारदात के बाद, वहां की खून से सनी मिट्टी हाथ में लेकर उन्होंने डायर को मौत के घाट उतारने की कसम खाई थी। (Jallianwala Bagh Massacre)
डायर की तलाश में कई देशों की खाक छानी और आखिर में लंदन पहुंचे। वहां एक कार ली सैलानी बनकर। एक पब में अंग्रेज फौजी से रिवाल्वर खरीदी। फिर पता चला कि जनरल डायर तो मर चुका है अपनी मौत, लेकिन उसका सहयोगी ओ डायर जिंदा है, जो हत्याकांड का उतना ही दोषी था….(Jallianwala Bagh Massacre)
ओ डायर का उस दिन लेक्चर था। ऊधम सिंह रिवाल्वर को किताब के पन्नों में खांचा बनाकर ले गए और लेक्चर खत्म होने के बाद गोलियां दाग दीं, दो गोलियों में वह ढेर हो गया…