कम बिजली बनेगी, अन्न घटेगा
देहरादून से मनमीत
हिमालय क्षेत्र में पोस्ट मानसून के बाद अब प्री मानसून में भी बादल मेहरबान नहीं हो पाए। पहले से ही लगातार पीछे सार्क रहे ग्लेशियर भी रिचार्ज नहीं हो पाए। जाहिर सी बात है इस बार हिमालय से निकल वाली जलधाराएं कमजोर होंगी। इससे न केवल उत्तराखंड बल्कि उत्तरी और मध्य भारत के राज्य भी प्रभावित होंगे।
उत्तराखंड के पहाडों में इस बार कम बारिश होने से जल विद्युत परियोजनाओं का उत्पादन भी गिर सकता है। नहर सप्लाई का जल स्तर भी कम रहने से फसलें भी प्रभावित होंगी।
उत्तराखंड के कई हिस्सों अगस्त के बाद दिसंबर जानकारी में बादल कुछ बरस पाए। वैज्ञानिकों को उम्मीद थी कि फरवरी और मार्च माह में पश्चिमी विक्षोभ के कारण बारिश हो सकती है। विक्षोभ आये भी, लेकिन वो बहुत कमजोर थे। जिससे मैदानों में मध्यम स्तर की बारिश हुई, जबकि 2500 मीटर से ऊंचाई वाले इलाकों में हल्का हिमपात हुआ। चार हजार मीटर की ऊंचाई, जहां ग्लेशियर होते हैं। वहां पर भी औसत से कम हिमपात हुआ है।
असल में, गर्मियों में पिघलने वाले ग्लेशियर सर्दियों में रिचार्ज होते रहे हैं। बार औसत से कम हिमपात होने से ग्लेशियर रिचार्ज नहीं हो पाये है। उनके ऊपर अतिरिक्त बर्फ की परत बेहद पतली है।
वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान में वरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक डा डीपी डोभाल बताते हैं, ये चिंता का विषय है। इस बार औसत से कम बर्फबारी ने ग्लेशियरों को रिचार्ज नहीं किया है। वहीं, मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह बताते हैं कि पोस्ट मानसून में बेहद कम बारिश हुई है। जबकि प्री मानसून की शुरूआत कोई अच्छी नहीं रही है। हालांकि अभी मार्च और अप्रैल का समय शेष है।
उत्तराखंड में, काली गंगा, पूर्वी धौलीगंगा, गौरीगंगा, सरयू, लधिया, टोंस, भागीरथी, पिंडर, मंदाकिनी, भिलंगना, महाकाली, करनाली, गंडक, यमुना नदियां हिमालयी ग्लेशियरों से निकलती है। इन सभी नदियों में देश के बड़े बांध भी स्थित है। वहीं गंगा से निकली गंग नगर से उत्तर प्रदेश की बड़ी उर्वर भूमि की सिंचाई होती है। ये नदियां कई राज्यों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी है।
सूखे जैसे हालात
राज्य के ज्यादातर जिलों में सूखे जैसे हालात पैदा हो गये है। हरिद्वार और यूएसनगर जैसे मैदानी जिलों में तो पिछले दो माह में एक बूंद पानी नहीं बरसा। जबकि वहां पर 9 8 एमएम बारिश होनी चाहिये थी। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, हरिद्वार और यूएसनगर में -100 फीसद सूखा दर्ज किया गया है। हरिद्वार के बाद चंपावत, टिहरी गढवाल, अल्मोडा, नैनीताल, पिथौरागढ और पौडी गढवाल सबसे ज्यादा बारिश को तरस रहे है। वहीं पोस्ट मानसून यानी अक्टूबर से दिसंबर में भी बारिश सामान्य से 40 फीसद कम रही।
उत्पादन घटेगा
निदेशक गौरीशंकर कहते हैं कि पोस्ट मानसून सितंबर और अक्टूबर में बेहद कम बारिश होने के कारण खरीफ की फसल पर आंशिक असर पडा था। रबी के उत्पादन में भी थोडी कमी आ सकती है। अभी सभी जिलों से इसका रिपोर्ट मांगी जा रही है।
उत्तराखंड में सूखे का संकट मंडरा रहा है। फरवरी में नहीं के बराबर बारिश होने से गेहूं की फसल खासी प्रभावित होने की आशंका है। खासकर पहाड़ों में, जहां किसान सिंचाई के लिए वर्षा पर ही निर्भर हैं। तेजी से तापमान बढ़ने के कारण फसल के समय से पूर्व पकने की आशंका भी नजर आ रही है। जो उत्पादन और गुणवत्ता दोनों के लिए घातक है।
सामान्य तौर पर गेहूं की बोआई अक्टूबर से दिसंबर के बीच और कटाई मार्च से मई तक की जाती है। 130 दिन में गेहूं की फसल तैयार हो जाती है। जनवरी और फरवरी में अच्छी बारिश के दो से तीन दौर इस फसल के लिए बेहद जरूरी हैं।
कम बारिश के बाद जल्दी फसल पकने से गेहूं का दाना छोटा रहेगा।