जानिए क्या है 162 साल पुराना राजद्रोह कानून जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया स्टे

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द लीडर | सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ऐतिहासिक आदेश में कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के तहत 162 साल पुराने राजद्रोह कानून को तब तक स्थगित रखा जाना चाहिए जब तक कि केंद्र सरकार इस प्रावधान पर पुनर्विचार नहीं करती. एक अंतरिम आदेश में, कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से तब तक इस प्रावधान के तहत कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने से परहेज करने को कहा, जब तक इस पर पुनर्विचार नहीं हो जाता. भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि धारा 124 ए के तहत लगाए गए आरोपों के संबंध में सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए.


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कानून का दुरुपयोग हो रहा है

तमाम दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने कहा कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा सर्वोपरि है. इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है. इसकी पुष्टि अटॉर्नी जनरल ने भी अपने मंतव्य में साफ कही है. कोर्ट ने कहा कि जिनके खिलाफ देशद्रोह के आरोप में मुकदमें चल रहे हैं और वो इसी आरोप में जेल में बंद हैं वो जमानत के लिए समुचित अदालतों में अर्जी दाखिल कर सकते हैं. क्योंकि केंद्र सरकार ने इस कानून पर पुनर्विचार के लिए कहा है, लिहाजा कोर्ट ने कहा है कि जब तक पुनर्विचार नहीं हो जाता तब तक इस कानून के तहत कोई केस नहीं होगा. साथ ही लंबित मामलों में भी कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी.

बता दें कि अभी तीन जजों की बेंच राजद्रोह कानून की वैधता पर सुनवाई कर रही है. इस बेंच में चीफ जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं. इस मामले में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि सरकार ने राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार और उसकी पुन: जांच कराने का निर्णय लिया है. केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया है कि वो राजद्रोह कानून की धारा 124 A की वैधता पर फिर से विचार करेगी. लिहाजा, इसकी वैधता की समीक्षा किए जाने तक इस मामले पर सुनवाई न करे. लेकिन कोर्ट ने केंद्र के इस पक्ष को नहीं माना है और कानून पर रोक लगा दी है.

क्या है मामला?

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून यानी 124ए के इस्तेमाल पर रोक लगाते हुए कहा कि पुनर्विचार तक इस कानून के तहत नया मामला दर्ज न किया जाए. केंद्र इसे लेकर राज्यों को निर्देश जारी करेगा. कोर्ट ने कहा, इस कानून के तहत जो मामले लंबित हैं उनपर यथास्थिति रखी जाए. साथ ही कोर्ट ने कहा है कि जिनके खिलाफ राजद्रोह के आरोप में मुकदमे चल रहे हैं और वो इसी आरोप में जेल में बंद हैं वो जमानत के लिए अदालतों में अर्जी दाखिल कर सकते हैं. अब इस मामले की सुनवाई जुलाई के तीसरे हफ्ते में होगी.

राजद्रोह कानून क्या है? आसान शब्दों में जानिए

राजद्रोह कानून का उल्लंघन आईपीसी की धारा 124ए में है और इसके मुताबिक अगर कोई सरकार के खिलाफ लिखता, बोलता या फिर किसी दूसरे तरीके का इस्तेमाल करता है, जिससे देश को नीचा दिखाने की कोशिश की गई हो, तो उसके खिलाफ 124ए के तहत केस दर्ज किया जा सकता है. इसी तहत देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने पर भी राजद्रोह के तहत मुकदमा दर्ज हो सकता है.

मालूम हो कि ये कानून ब्रिटिश शासन में साल 1870 यानी करीब 152 साल पहले बनाया गया था. तब इस कानून का इस्तेमाल अंग्रेज सरकार के खिलाफ बगावत करने वालों के खिलाफ किया जाता था. बताया गया कि देश में पहली बार साल 1891 में बंगाल के एक पत्रकार पर राजद्रोह का आरोप लगा था. वो ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियों का विरोध कर रहे थे.

सबसे पहले कब किया गया इस्तेमाल

भारत में राजद्रोह कानून के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए का सबसे पहली बार वहाबी आंदोलन के दौरान इस्तेमाल किया गया था. स्वाधीनता आंदोलन के काल में वहाबियों की बढ़ती गतिविधियां ब्रिटिश सरकार के लिए चुनौतियां पेश कर रही थीं. अंग्रेजी हुकूमत ने वहाबियों की आवाज को कुचलने के लिए इस कानून का इस्तेमाल कर उन्हें चुप कराने की कोशिश की थी.

जुलाई के तीसरे हफ्ते में होगी आगे की सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई के दौरान राजद्रोह कानून पर रोक लगाने के साथ ही इस मामले की अगली सुनवाई आगे के लिए टाल दी है. अब इस मामले में सुनवाई जुलाई के तीसरे हफ्ते में होगी.


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केंद्र ने कहा- कानून पर न लगाई जाए

रोक सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई. इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कानून पर रोक न लगाने की मांग करते हुए कहा कि केंद्र की ओर से राज्यों को स्पष्ट निर्देश होगा कि बिना जिला पुलिस कप्तान यानी एसपी या उससे ऊंचे स्तर के अधिकारी की मंजूरी के राजद्रोह की धाराओं में एफआईआर दर्ज नहीं की जाएगी. वहीं, याचिकाकर्ताओं की तरफ से दलील रखते हुए वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से मांग रखी थी कि राजद्रोह कानून पर तत्काल रोक लगाने की जरूरत है. कोर्ट ने राजद्रोह कानून पर रोक लगाते हुए कहा, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा सर्वोपरि है. इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है.

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