कायमखानी मुस्लिम शासक, जिन्होंने गौ हत्या पर लगा दिया था प्रतिबंध

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एचए बरारी सन 1988-90 के दौरान हरियाणा के राज्यपाल रहे। उन्ही दिनों उन्होंने पूरे राज्य का व्यापक भ्रमण करते हुए अलग अलग स्थानों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करते हुए नोट्स बनाए और उनको संकलित करते हुए एक पुस्तक का रूप दिया गया जिसका शीर्षक है ‘अ गवर्नर्स ट्रिस्ट विद हरयाणा’।

हरियाणा के बारे में इस रोचक पुस्तक में एक जगह जिक्र है-

”एक फौजदार सैयद नासिर ने जो हिसार का नवाब था पृथ्वीराज चौहान के एक वंशज को पकड़ कर उसे मुसलमान बनाया और उसका नाम कायम खां रख दिया गया। सैयद नासिर की मृत्यु के बाद कायम खां हिसार का नवाब बना और दिल्ली के सुल्तान के दरबार में ऊंचा रुतबा हासिल किया। कायम खां के उत्तराधिकारी कायमखानी कहलाए जाने लगे, जो मुसलमान थे लेकिन पहले राजपूत हिंदू थे और पृथ्वीराज चौहान के वंशज थे। बगल के राजस्थान में अनेकों कायमखानी हैं।”

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चौहान गोत्र को कल्पवृक्ष के समान बताते हुए उसकी दर्जनों शाखाओं की गिनती की जाती है, यथा: देवड़े, चाहिल, मोहिल, गोधे, गूंदल, सिसोदिये, हाले, झाले, उमट, खीची, छोकर आदि आदि। राजा जेवर चौहान के चार पुत्र हुए- गुगा, वैरसी, सेस और धरह। गुगा के पुत्र का नाम नानिग था। उधर वैरसी की शाखा से उदयराज-जसराज-केशोराय- बीजैराज- पदमसी की पीढ़ियों से होते हुए पदमसी का बेटा पृथ्वीराज हुआ।

इस प्रकार से गुगा से करीब 15-16 पीढ़ियों के बाद मोटेराव हुआ जिसके चार पुत्र थे, जिनमें से करमचंद का मुस्लिम नाम कायम खां हो गया। एक पुत्र जगमाल को छोड़ के बाकी दो पुत्र जैनदी और सदरदी भी मुसलमान हो गए थे।

तत्कालीन हिसार-हांसी के नवाब सैयद नासिर ने कायम खां को अपने 12 बेटों के साथ पढ़ाया और उसकी लियाकत देखते हुए उसे अपना वारिस घोषित किया। उसकी मृत्यु के बाद सुल्तान फिरोजशाह ने कायम खां को मनसब दी और जब सुल्तान लड़ने के लिए ठट्ठा गया तो पीछे से राजकाज की बागडोर कायम खां को संभालने को कहा।

इसी दौरान कायम खां ने मंगोलों के आक्रमण का कड़ा मुकाबला करते हुए उन्हें हराया। फिरोजशाह की तीसरी पीढ़ी से सुल्तान नसीर खां निःसंतान मरा तो एक ग़ुलाम मल्लू खां ने कायम खां के विरोध के बावजूद राजकाज संभाला। इसी समय कायम खां ने हिसार – हांसी के नवाब के नाते दूनपुर, रिणी, भटनेर, भादरा, गरानो, कोठी, बजवारा, कालपी, इटावा, उज्जैन, धार, और इनके बीच के छोटे शासकों पर विजय प्राप्त कर ली थी।

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सन 1398 में तैमूर ने दिल्ली पर हमला किया और मल्लू खां को मारके ख़िज़्र खां को सुल्तान बना दिया गया। ख़िज़्र खां ने झज्जर में पैदा हुए लाहौर के फौजदार मोजदीन को कायम खां से बड़ी फौज लेकर लड़ने को भेजा। उस भयंकर लड़ाई में कायम खां की जीत हुई। आखिर, मुल्तान में ख़िज़्र खां और कायम खां में सुलह हुई और उन्होंने मिलकर राठौड़ राव चूड़ा को मारके नागौर को अपने अधीन कर लिया।

कायम खां ने ख़िज़्र खां को फिर से दिल्ली पर कब्ज़ा करने में विशेष मदद की लेकिन आपसी मन मुटाव बना रहा। पिचानवे साल की उम्र में कायम खां की मृत्यु हुई। उसके पांच बेटे थे।

इसी बीच दिल्ली में अनेकों सुल्तान थोड़े थोड़े समय के लिए आए और गए लेकिन कायमखानी अपना स्वतंत्र वजूद रखते हुए अनेक इलाकों में फैल गए। आखिर बहलोल लोदी (1451-1489) से उनके मधुर संबेध बने । उसके बाद से लेकर लगातार वे मुग़ल बादशाहों के खासमखास रहे।

दिल्ली के सुल्तानों से अनबन रहते उन्होंने हिसार छोड़कर फतेहपुर बसाया। सन 1441 में एक ही दिन में फतेह खां ने फतेहपुर में छः किलों की नीवं रखी थी। कायम खां के बेटे इख़्तियार खां ने हरियाणा-राजस्थान सीमा पर ढोसी के पहाड़ पर किला बनाया और आमेर तथा अमरसर के राजा उसे कर देते थे।

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कायमखानियों के पास झाड़ौद पट्टी की नवाबी सन 1395 से 1725 तक, झुंझनु की सन 1444 से 1729 तक, बड़वासी की सन 1420 से 1729 तक, केड़ की सन 1441 से 1721 तक, चरखी दादरी की सन 1351 से 1440 तक, और हांसी- हिसार में 1448 तक रहने के बाद सन 1449 से 1730 तक फतेहपुर (शेखावाटी) की इनके पास एक बड़ी नवाबी थी।

दिल्ली के सुलतान बहलोल लोदी की बेटी झुंझनू के नवाब से ब्याही गई थी और इनकी बेटी बादशाह अकबर से ब्याही गई। उसके बाद इसी प्रकार राजपूतों और कायमखानियों के बीच विवाह संबधों के अनेक दृष्टांत इस पुस्तक में वर्णित हैं।

सुल्तान बहलोल लोदी के साथ रणथम्भोर की जीत, उससे पहले राजस्थान के भिन्न भिन्न राजाओं से लड़ाई में जीतना, मुग़ल बादशाहों की तरफ़ से कभी दक्कन में, कभी पहाड़ी राजाओं से, कभी मेवाड़, कभी भिवानी, कभी नागौर, कभी मेवात, तो कभी पेशावर, कभी बल्ख, काबुल, कसूर, ठट्ठा आदि इलाक़ों पर बहादुरी दिखाने और मौत को गले लगाने में कायमखानियों ने अपना नाम कमाया। नवाब अलफ खांने पहाड़ी राजाओं से लड़ते हुए अपनी जान गंवाई और उसका वारिस दौलत खां चौदह सालों तक नगरकोट (कांगड़ा) का शाहजहां की तरफ़ से दीवान रहा।

कायमखानी पूर्व में चौहान राजपूत थे और मुसलमान बनने के बाद भी उनके अधिकांश रीति रिवाज राजपूतों वाले ही थे तथा धर्मपरिवर्तन के बाद भी उनके विवाह संबंध राजपूत जाति में होते रहे। कायमखानी वंश के प्रवर्तक कायम खां की सातों पत्नियां हिंदू राजपूत थीं। उनकी अधिकतर प्रजा हिंदू थी जिनकी भावनाओं की वे कद्र करते थे और उनके राज्य में गौ हत्या निषिद्ध थी।

संदर्भ-तथ्य स्रोत: देस हरयाणा पत्रिका

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