J&K: श्रीनगर की अनोखी जामिया मस्जिद में चार महीने बाद गूंजा ‘अल्लाह हू अकबर’, यह है इतिहास

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jama masjid srinagar: INTERNET
आशीष आनंद-

श्रीनगर की ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में शुक्रवार को चार महीने के अंतराल के बाद कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए सामूहिक नमाज अदा की गई। इसके अलावा कुछ महिलाओं ने मस्जिद में उनके लिए तय जगह पर नमाज अदा की। इस दौरान कानून-व्यवस्था बनाए रखने को कड़े सुरक्षा इंतजामों किए गए।

16वीं सदी की जामिया मस्जिद में लंबे समय बाद नमाज अदा होने के बंदोबस्त पर स्थानीय अधिकारी ने कहा इलाके में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था क्योंकि एक साल बाद नौहट्टा मस्जिद में पहली सामूहिक नमाज होने के एक दिन बाद आईईडी विस्फोट हुआ था।

इस ऐतिहासिक मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन औकाफ ने पहले ही यह सूचना जारी कर दी थी कि कोविड मामलों में कमी आने के चलते इस सप्ताह जुमे की नमाज होगी और अब जम्मू-कश्मीर के सभी बड़ी मस्जिदों, खानकाहों, तीर्थस्थलों और इमामबाड़ों में नमाज-इबादत अदा की जा रही है।

अंजुमन औकाफ ने यह भी साफ किया कि नमाजियों को जुमे के अलावा की भी नमाजों के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करना होगा।

श्रीनगर की जामिया मस्जिद को 1394 में सैद-उल-औलिया मीर सैय्यद अली हमदानी के बेटे मीर मुहम्मद हमदानी के आदेश पर सुल्तान सिकंदर शाह कश्मीरी ने बनवाया था। नौहट्टा इलाके में लोकल मार्केट की हलचल के बीच यह शांत मस्जिद अनूठी वास्तुकला के लिए जानी जाती है, जहां 378 देवदार लकड़ी से बने स्तंभ, मस्जिद परिसर में मौजूद फव्वारा बेहद खूबसूरत नजर आते हैं। फव्वारे का पानी नहाने और वुजू के लिए भी इस्तेमाल होता है।

सुल्तान सिकंदर के बेटे ज़ैन-उल-अबिदीन ने बाद में ढांचे के साथ बुर्ज को शामिल कर मस्जिद का विस्तार किया। इस मस्जिद की स्थापत्य शैली और वास्तुकला इंडो-सरसेनिक के साथ ही बौद्ध पैगोडा से मेल खाती है।

जामिया मस्जिद में एक बार में कुल 33 हजार 333 लोग नमाज अदा कर सकते हैं। संरचना चारों तरफ चौड़ी गलियों से घिरी हुई है और बीच में एक चौकोर बगीचा है। मस्जिद के दक्षिणी हिस्से में प्रवेश द्वार में बड़ा सा बरामदा है, जहां से रास्ता अंदर मौजूद आंगन की ओर जाता है।

यह प्रांगण पारंपरिक चार बाग योजना पर आधारित है। इसके बीच में एक तालाब भी है। पश्चिमी दीवार में एक काले संगमरमर का ‘मेहराब’ है, जहां खूबसूरती से अल्लाह के 99 गुण उकेरे गए हैं। पूरा प्रांगण नुकीले धनुषाकार और ईंट के आर्केड से बना है।

जामिया मस्जिद का कुल क्षेत्रफल 1 लाख 46 हजार 304 वर्ग फीट है और यह चार मीनारों के साथ आकार में चतुष्कोणीय है। मीनारें हर ओर से बीच में हैं और पिरामिड जैसे छत्र से ढकी हुई हैं, जो एक खुले बुर्ज में तक हैं।

सभी मीनारें विशाल हॉल से जुड़ी हुई हैं और 378 देवदार स्तंभ छत को सपोर्ट करते हैं। चमकीले पीले चबूतरे ईंट के रास्तों और हरे-भरे लॉन को सटे हुए हैं, जिसे देखकर ही आने वालों का मूड अच्छा हो जाता है।

जामिया मस्जिद निर्माण की शुरुआत 1394 में हुई और 1402 में बनकर तैयार हुई। लेकिन मस्जिद का यह खूबसूरत ढांचा कई बार हादसों का शिकार हुआ। तीन बार इसमें आग लगी और फिर क्षतिग्रस्त हिस्सों को ठीक किया गया।

पहली बार आग 1479 ईसवी में लगी, जिसके बाद तत्कालीन शासक सुल्तान हसन शाहम ने पुनर्निर्माण का काम शुरू कराया, लेकिन काम पूरा होने से पहले ही उनका निधन हो गया। इसके बाद मुहम्मद शाह और फतेह शाह के शासन में कश्मीर सेना के कमांडर-इन-चीफ इब्राहिम मागरे ने इस काम को अपने हाथ में लिया, मरम्मत का काम 1503 ईसवी में पूरा हुआ।

1620 में, जब कश्मीर में जहांगीर का शासन था, एक बार फिर आग लग गई। उस वक्त तकरीबन 12 हजार इमारतें नष्ट हो गईं, जिसमें जामिया मस्जिद भी थी। बादशाह जहांगीर ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का हुक्म जारी कर प्रसिद्ध इतिहासकार मलिक हैदर को यह काम सौंपा। मरम्मत के काम में 17 साल लगे।

तीसरी बार आग औरंगजेब के शासनकाल में 1674 में लगी, भयंकर लपटों ने जामिया मस्जिद के ढांचे की सूरत बर्बाद ही कर दी थी। बताया जाता है कि जब औरंगजेब ने दुर्घटना के बारे में सुना तो उन्होंने केवल इतना पूछा, ‘क्या चिनार सुरक्षित हैं? उनके सुरक्षित होने पर मस्जिद को थोड़े समय में फिर से बनाया जा सकता है। पूरी तक बने चिनार को कभी नहीं बदला जा सकता है।’

औरंगजेब ने हादसे की पूरी रिपोर्ट लेकर शहर के सभी ईंट बनाने वालों और राजमिस्त्रियों को लेकर मरम्मत के साथ सौंदर्यकरण का काम तीन साल के अंदर पूरा करा दिया। महाराजा प्रताप सिंह के शासनकाल में मस्जिद में आखिरी बार नवीनीकरण का काम किया गया।


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