मुहम्मद शाहीन
1970 में इजराइली संसद “कनेसट” ने कानून बनाया कि जिन यहूदियों की इजराइल के कयाम यानी 1948 के पहले फिलिस्तीन (ईस्ट येरूशलम, वेस्ट बैंक, गाज़ा) में जहां कहीं भी प्रॉपर्टी हुआ करती थी. उस प्रॉपर्टी को वापस ले सकते हैं. और सरकार इसमें यहूदियों की मदद करेगी. दरअसल ब्रिटिश के मकबूजा फिलिस्तीन में 1917 के बालफोर डिक्लेयरेशन के बाद यहूदियों के जत्थे आना शुरू हो गए थे, जो हिटलर के एंटी यहूदी होलोकॉस्ट के बाद बहुत ज़्यादा बढ़ गए थे.
ब्रिटिश पीरियड में यहूदी यहां आते और ग़रीब फिलिस्तीनियों से मुंहमांगे दामों पर उनकी जमीन खरीद लेते थे. जब यहूदियों की तादाद किसी इलाके में बढ़ने लगी, तो इन्होंने ज़बरदस्ती भी जमीन कब्जानी शुरू कर दी. ज़ाहिर है पुश्त पर ब्रिटिश एंपायर जो खड़ा था. ज़बरदस्ती से मुराद ये कि कुछ लोग अपनी ज़मीन बेचकर चले जाते थे और कुछ नहीं बेचते थे, तो ऐसा होता था कि दो यहूदी के बीच में किसी मुसलमान की ज़मीन होती थी. तब दो यहूदी मिलकर एक ब्लॉक बनाते और बीच वाले मुसलमान को ताक़त के ज़ोर पर भगा देते थे.
ये कारनामे बड़े पैमाने पर अंजाम दिए गए और तारीख में दर्ज भी हैं. इन्हीं प्रॉपर्टी को दोबारा हथियाने के लिए ही इजराइल हुकूमत ने ये कानून बनाया था. इस कानून में सबसे बड़ी खामी ये थी कि समानता के अधिकार का उल्लंघन हो रहा था. वो भी इस तरह कि बहुत सारे फिलिस्तीनियों की जमीनें इजराइली ऑक्युपाई क्षेत्र में भी 1948 से पहले हुआ करती थीं. फिलिस्तीनियों को यह कानून हक़ नहीं दे रहा था कि वो भी इजराइली इलाकों में 1948 से पहले की अपनी प्रॉपर्टी पर दावा कर सकें.
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सिर्फ यहूदियों को ये हक दिया जा रहा था कि वो फिलिस्तीन टेरेटरी में अपनी पुरानी ज़मीन वापस हासिल कर सकते हैं. दरअसल हुआ ये था कि जब संयुक्त राष्ट्र संघ UNO के जरिए इजराइल कायम हुआ. तो UNO ने ही दो राष्ट्र सिद्धांत के तहत फिलिस्तीन को दो आजाद देशों में बांट दिया था। 48 प्रतिशत फिलिस्तीन के लिए, 44 प्रतिशत इजराइल के लिए और 8 प्रतिशत ओल्ड येरूशलम सिटी के लिए.
येरूशलम को इंटरनेशनल सिटी बनाकर सीधे UNO के अधीन दे दिया गया था. इसी बंटवारे के मुताबिक दोनों जगहों से मुसलमानों और यहूदी आबादी की अदला-बदली शुरू हुई थी. इस बंटवारे को मुसलमानों ने नहीं माना. और इसी मुद्दे पर 1948 की पहली अरब-इजराइल के बीच जंग हुई. जंग में अरबों को शिकस्त मिली. और इस जंग का नतीजा ये निकला कि जो इजराइल पहले 44 प्रतिशत हिस्से के मालिक बनाए गए थे. वो अब 72 प्रतिशत हिस्से पर कब्ज़ाधारी हो गया. इसी कब्ज़े में वेस्ट येरूशलम भी शामिल है जो पहले इजराइल के पास नहीं था.
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1967 में फिर अरब-इजराइल के बीच दूसरी जंग हुई. जिसे सिक्स डेज वॉर कहा जाता है. इसमें अरबों को फिर शिकस्त हुई और इजराइल अब वेस्ट बैंक, ईस्ट येरूशलम, गोलान हाइट्स और गाज़ा के साथ सहराए सीनाई पर भी काबिज़ हो गया. 1973 में फिर से अरब-इजराइल के मध्य तीसरी बार युद्ध हुआ. जिसे यौमे किप्पूर जंग कहा जाता है.
इसमें जंगबंदी होने पर मिस्र ने इजराइल से शांति समझौता करके सहराए सीनाई तो वापस ले लिया. लेकिन बदले में मिस्र की तरफ से इजराइल को रिकॉग्नाइज़ किया गया. इस तरह मिस्र पहला अरब मुल्क बना, जिसने इजराइल को मान्यता दी. कुल मिलाकर 1973 के बाद इजराइल के पास अब गोलान हाइट्स, गाज़ा, ईस्ट यरूशलम और वेस्ट बैंक भी जुड़ चुके थे.