वाराणसी की ज्ञानवापी मस्ज़िद पर हाईकोर्ट आज सुनाएगा फैसला : जानिए क्या है पूरा विवाद ?

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द लीडर हिंदी, लखनऊ | इलाहाबाद हाईकोर्ट में वाराणसी के बहुचर्चित ज्ञानवापी मस्जिद व बाबा विश्वनाथ मंदिर विवाद मामले में आज यानी गुरुवार को फैसला आ सकता है। हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित कर लिया था। मंदिर-मस्जिद के इस विवाद में सिविल जज के आदेश को चुनौती दी गई थी। सिविल जज ने ASI को खुदाई का आदेश दिया था। मामले की सुनवाई जस्टिस प्रकाश पांडिया की एकल पीठ ने की है।

क्या है पूरा मामला? 

आपको बता दें कि ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि इस विवादित मस्जिद के नीचे ज्योतिर्लिंग है। यही नहीं ढांचे की दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र भी प्रदर्शित है। दावा किया जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने 1664 में नष्ट कर दिया था। फिर इसके अवशेषों से मस्जिद बनवाई गई, जिसे मंदिर की जमीन के एक हिस्से पर ज्ञानवापसी मस्जिद के रूप में जाना जाता है।


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काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मामले में 1991 में वाराणसी कोर्ट में एक मुकदमा दाखिल हुआ था। इस याचिका कि जरिए ज्ञानवापी में पूजा की अनुमति मांगी गई। लेकिन कुछ ही दिनों बाद मस्जिद कमेटी ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) 1991 का हवाला देकर इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। जिसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1993 में स्टे लगाकर आदेश दिया।  हालांकि स्टे ऑर्डर की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई और फैसले के बाद 2019 में वाराणसी की कोर्ट में फिर से इस मामले की सुनवाई शुरू हो गई।

मस्जिद की इंतजामिया कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने वाराणसी की अदालत के फैसले का विरोध करते हुए कोर्ट में अर्जी दी थी, जिसमें कहा गया था कि इस विवाद से जुड़ा एक मामला पहले से ही हाईकोर्ट में पेंडिंग है। ऐसे में वाराणसी की अदालत को इस तरह का आदेश पारित करने का कोई अधिकार नहीं है।

यह गलत आदेश है और इसे रद्द कर देना चाहिए। लम्बी बहस के बाद कोर्ट ने 31अगस्त को फैसला सुरक्षित कर लिया था। जस्टिस प्रकाश पाडिया की सिंगल बेंच दोपहर के वक्त अपना फैसला सुना सकती है। अदालत के फैसले से यह तय होगा कि वाराणसी सीनियर डिवीजन सिविल जज का आदेश सही है या नहीं।


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मस्जिद पक्ष ने दी ये दलील

मस्जिद पक्षकार के अधिवक्ता एसएफए नकवी का कहना है की वाराणसी न्यायालय सिविल जज द्वारा 8 अप्रैल को पारित आदेश 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का खुले तौर पर उल्लंघन है। 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत उन्होने मंदिर पक्ष की याचिका को औचित्यहीन बताते हुए वाराणसी सिविल जज के 8 अप्रैल को पारित आदेश पर रोक लगाने की मांग की है। याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 के तहत 15 अगस्त 1947 के पहले के किसी भी धार्मिक प्लेस में कोई भी तब्दीली या फेरबदल नहीं किया जा सकता।


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मंदिर पक्ष की ये है दलील

मंदिर पक्षकारों का कहना है कि 1664 में मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर को तोड़कर उसके अवशेषों पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था जिसकी वास्तविकता जानने के लिए मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण कराना जरूरी है। मंदिर पक्ष का दावा है की मस्जिद परिसर की खुदाई के बाद मंदिर के अवशेषों पर तामीर मस्जिद के सबूत अवश्य मिलेंगें। इस लिए एएसआई सर्वेक्षण किया जाना बेहद जरूरी है। मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण से यह साफ हो सकेगा की मस्जिद जिस जगह तामीर हुई है वह जमीन मंदिर को तोड़कर बनाई गई है या नहीं।

Fast Track Court ने यह दिया था फैसला

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में  8 अप्रैल को फास्ट ट्रैक कोर्ट (Fast Track Court) ने अपना फैसला सुनाया था। कोर्ट ने सर्वेक्षण को मंजूरी देते हुए कहा था कि सर्वेक्षण का खर्च राज्य सरकार उठाएगी। साथ ही केंद्र के पुरातत्व विभाग के 5 लोगों की टीम बनाकर पूरे परिसर का अध्यन करने निर्देश दिया गया था।

विश्वनाथ मंदिर के अवशेषों से ही ज्ञानवापी मस्जिद का हुआ निर्माण

याचिकाकर्ता ने दावा दिया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशेषों से ही ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण हुआ था। साल 1991 से चल रहे इस विवाद में 2 अप्रैल को सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट (Fast Track Court) के सिविल जज ने दोनों पक्षों की सर्वेक्षण के मुद्दे पर बहस के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।


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