इस्लामोफोबिया से ग्रस्त यूरोप और विवादों से सुर्खियों में छाया फ्रांस। पैगंबर मुहम्मद के कैरिकेचर को लेकर खून-खराबे और रमजान में हलाल चिकन पर प्रतिबंध के बाद अब मुस्लिम महिलाओं पर सार्वजनिक जगहों पर हिजाब पहनने पर कानूनी पाबंदी। हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर हंगामा मच गया है, जो किस हद तक जाएगा, कुछ नहीं कहा जा सकता।
बीते कुछ समय से अमेरिका से लेकर यूरोप तक इस्लामोफोबिया से ग्रस्त लोगों के मुसलमानों पर हमलों की घटनाओं में खासा इजाफा हुआ है, जिनमें महिलाओं को भी निशाना बनाया जा रहा है। शुक्रवार को फ्रांस की नेशनल एसेंबली के निचले सदन में हिजाब के इस्तेमाल पर प्रतिबंध का विवादास्पद कानून पारित होने पर मुस्लिम समुदाय में खौफ और गुस्से की लहर दौड़ गई। उन्होंने मैकों सरकार पर इस कानून को लागू कर इस्लामोफोबिया की आग को भड़काने का इल्जाम लगाया।
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पेरिस के बाहरी इलाके में रहने वाली पांच बच्चों की मां आयशा कहती हैं कि 14 साल की उम्र में स्कूल में दिखावटी धार्मिक प्रतीकों पर प्रतिबंध था। वह याद करती है कि जब उन्होंने अपना स्कार्फ हटाने से इनकार किया था तो उन्हें अनुशासन समिति का सामना करना पड़ा था। मोरक्को की होने के बावजूद अनुशासन समिति के सदस्यों ने अल्जीरियाई प्रतिरोध आंदोलन का भागीदार होने का आरोप मढ़ दिया था। आज उससे कहीं ज्यादा मुश्किल वक्त है। इस्लामोफोबिया से ग्रस्त लोग खौफ का माहौल बना रहे हैं और इसी वक्त में इस तरह का कानून आना उनके दुस्साहस को बढ़ाएगा।
तीन बच्चों की मां और पेरिस में रहने वाली एक विश्वविद्यालय की शोधकर्ता नूरा ने बताया कि कैसे उन्हें 2019 में बेटे का स्कूल छुड़वाने का दबाव बनाया गया, सिर्फ इसलिए कि हेडस्कार्फ़ पहन रखा था। यहां तक कि मौके पर बुलाई गई पुलिस ने भी यह कहते हुए जाने के लिए कहा कि फ्रांस एक धर्मनिरपेक्ष देश है। उस दिन बहुत अपमानित महसूस कर रोई थी। उन्होंने कहा, अब भविष्य में क्या होगा, कुछ नहीं कहा जा सकता।
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यूरोपीय मुस्लिम युवा और छात्र संगठनों के फोरम फेमिसो की उपाध्यक्ष और कानून की छात्रा हिबा लाट्रेचे ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को हिजाब के चलते इस्लामोफोबिया का निशाना बनाया जा रहा हो, ऐसे में यह देश चलाने वाले हिजाब को प्रतिबंधित करने का कानून बनाकर बीमारी को कानूनी जामा पहनाने की कोशिश कर रहे हैं, यह बहुत ही निराशजनक है फ्रांस के लोकतांत्रिक इतिहास के लिए। नफरत से उपजे अपराध को संस्थागत और व्यवस्थित करने जैसी बात है यह।
हिबा ने मुस्लिम महिलाओं के साथ “डोंट टच माई हिजाब” मुहिम छेड़ दी है, जो वायरल हो गई है। इस मुहिम के समर्थन में ओलंपिक एथलीट इब्तिहाज मुहम्मद और सोमाली में जन्मीं मॉडल रावदा मोहम्मद जैसी हाई-प्रोफाइल मुस्लिम महिलाएं भी जुड़ गई हैं।
इस मामले में फ्रांसीसी सरकार का कहना है कि इस्लामी अलगाववाद के खतरे को दूर करने के लिए विधेयक लाकर शुक्रवार को फ्रांसीसी संसद के निचले सदन में पारित किया गया। इसका मकसद गणतंत्रात्मक मूल्यों की रक्षा करना है।
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वहीं, एमनेस्टी इंटरनेशनल समेत आलोचकों की दलील है कि यह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है, भेदभाव को बढ़ा सकता है। यहां तक कि मस्जिदों के निर्माण को भी प्रभावित कर सकता है।
यहां बता दें, इसी महीने की शुरुआत में यूरोपीय संघ की अदालत ने यह भी फैसला दिया था कि नियोक्ता चाहें तो मुस्लिम कर्मचारियों के कार्यस्थल पर नकाब या हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। जबकि यूरोप में कई जगह इस तरह की कोशिशें होती ही रही हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन नकाब में मुस्लिम महिलाओं को लेटर बॉक्स बताकर खिल्ली उड़ा चुके हैं।
Source: European Media
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