तुर्की के शिल्पी क्रांतिकारी मुस्तफा कमाल अतातुर्क के मकबरे पर उमड़ी भीड़, यह थी वजह

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तुर्की कई वजहों से अहम बना हुआ है, लेकिन इस गणतंत्र बुनियाद रखने वाले मुस्तफा कमाल अतातुर्क के ख्यालातों का असर आज भी कायम है। इसका अंदाजा 23 अप्रैल को उनके अंतिम विश्राम स्थल अनीतकबीर पर उमड़ी भीड़ से लगाया जा सकता है, जब राष्ट्रीय संप्रभुता और बाल दिवस के मौके पर यहां पैर रखने की जगह भी नहीं बची और लोग पुष्पांजलि देने को व्याकुल हो उठे। (Mustafa Kemal Ataturk)

तुर्की के ग्रैंड नेशनल असेंबली के अध्यक्ष मुस्तफा सेनटॉप की सरपरस्ती में राष्ट्रीय शिक्षामंत्री महमुत ओज़र, छात्रों और राज्य के अधिकारियों ने आधिकारिक समारोह भाग के बाद अनीतकबीर को जनता के लिए खोला तो नजारा देखने लायक था कि कैसे देश को गढ़ने वाले लोकप्रिय नेता से जनता जुड़ाव रखती है। हर उम्र के लोगों में Anıtkabir के प्रवेश द्वार पर दरवाजे खुलने के बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, जिनके हाथों में अपने प्रिय नेता मुस्तफा कमाल अतातुर्क के पोस्टर और तुर्की झंडे थे।

यह मंजर इसलिए भी खास कहा जा सकता है, कि जब तुर्की समेत दुनिया के कई मुल्कों में मजहब के आधार पर कट्टरपंथ को हवा देने वाली ताकतों का बोलबाला है, वहां जीवनभर कट्टरपंथ को धूल चटाने वाला नेता कमाल अतातुर्क आज भी प्रेरणा बना हुआ है। अतातुर्क के मकबरे में पुष्प अर्पित करने वाले बहुत से लोग कुछ देर को जैसे शांत होकर यह सुनना चाहते थे, शायक कमाल कुछ बताएं आज के हालात पर। कुछ ने मकबरे के आगे दुआ भी पढ़ी।

सैनिकों के गार्ड ऑफ ऑनर बाद समारोह में शामिल होने वाले इस पल को सहेजने के लिए घंटों जुटे रहे और यादगार तस्वीरें लीं। (Mustafa Kemal Ataturk)

पत्नी आयसे गुवेन के साथ अनीतकबीर पहुंचे किसान नूरी गुवेन ने कहा, हम कल ही अंकारा आ गए थे इस दिन के लिए, सुबह को तड़के ही मुस्तफा कमाल अतातुर्क से मिलने को अनीतकबीर आ गए थे, जिससे हमें जल्दी मौका मिल सके।

कोकेली से अपने परिवार के साथ अनीतकबीर से मिलने आए प्राथमिक विद्यालय के छात्र मुस्तफा दोरुक ओडाबास कहा, 23 अप्रैल बहुत ही खास दिन है और बच्चों को इस दिन तोहफा देने के लिए मुस्तफा कमाल अतातुर्क के हम शुक्रगुजार हैं।

रिटायर्ड किंडरगार्टन शिक्षिका सेयदा अव्सी ने कहा कि वह अपनी पोती तैमूर ओनूर के साथ आईं और 23 अप्रैल को राष्ट्रीय संप्रभुता व बाल दिवस मनाया। उन्होंने कहा कि वह अपने पोते-पोतियों में अतातुर्क के प्यार को बसा देना चाहती हैं। (Mustafa Kemal Ataturk)

यहां पहुंचे ज्यादातर लोगों ने कहा कि हम सिद्धांतों और समाज को सही दिशा की ले जाने के लिए अतातुर्क के नक्शेकदम पर चलते रहेंगे।

मुस्तफा कमाल अतातुर्क को कमाल पाशा नाम से भी जाना जाता है और उनका गहरा क्रांतिकारी नाता भारत से भी है। एक ओर तो उनके आंदोलन के खिलाफ भारत में खिलाफत आंदोलन चला। उसी खिलाफत और असहयोग आंदोलन से निकले क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल।

साहित्यिक पत्रिका ‘पहल’ में क्रांतिकारी शहीद राम प्रसाद बिस्मिल पर प्रख्यात साहित्यकार सुधीर विद्यार्थी ने इस मामले पर कभी लेख लिखा था। जिसमें उन्होंने बताया कि क्रांतिकारी मुस्तफा कमाल पाशा भारत के क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल से काफी प्रभावित रहे और बिस्मिल उनसे।

1927 में बिस्मिल, अशफाक व रोशन सिंह को फांसी के बाद मुस्तफा कमाल पाशा ने इन क्रांतिकारियों का अपने संस्मरणों में जिक्र भी किया। यही नहीं,1936 में तुर्की के “दियारबाकिर” राज्य में बिस्मिल शहर बसाकर उनकी शहादत व बहादुरी को सलाम किया। दियारबाकिर का मतलब होता है ‘विद्रोहियों का इलाका’। (Mustafa Kemal Ataturk)

यहीं से मुस्तफा कमाल पाशा ने क्रांति की शुरुआत की थी। तुर्की के साउथ ईस्ट अनातोलिया के इस ‘दियारबाकिर’ प्रांत के पूर्व में ‘बिस्मिल’ के नाम पर एक जिला आबाद है। ये वही भारतीय क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल थे, जिन्होंने 9 अगस्त 1927 के प्रसिद्ध “काकोरी एक्शन” के बाद अपने तीन साथियों के साथ 19 दिसंबर 1927 को शहादत दी।

तुर्की गणराज्य की स्थापना कमाल पाशा ने 1923 में की। दियारबाकिर में ‘बिस्मिल’ शहर की स्थापना 1938 में की गई।

बिस्मिल भी तुर्की में हुए बदलाव के चलते मुस्तफा से प्रभावित रहे और उन्होंने 1922 में ‘प्रभा’ पत्रिका में ‘विजयी कमाल पाशा’ नाम से एक लेख भी लिखा था, जब अगस्त 1922 में वहां विजय दिवस मनाया गया था।


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