चंबल धीरे बहो….भाग-2

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सुधीर विद्यार्थी

फीरोजाबाद की सीमा से मैनपुरी जि़ले में प्रवेश करने वाली सेंगुर नदी इन दिनों अपनी अनदेखी के चलते कीचड़ और झाडि़यों से अवरुद्ध है। इन मरणासन्न नदियों का मर्सिया पढ़ने के लिए अब यहां कोई नहीं आता। नहीं कहा जा सकता कि इस नदी के पुराने दिन लौटने के लिए प्रशासनिक कवायद कितनी कारगर होगी जिसके लिए करहल और बरनाहल के खंड विकास अधिकारी मनरेगा से इसकी साफ-सफाई करवाने का वादा करते हैं।

कल चंबल नदी पर ही महुआसूड़़ा और बंसरी के बीच 25 मीटर ऊंचे बन रहे पुल की षटरिंग क्रेन से नीच गिर गई जिसमें 28 वर्ष का मजदूर पउआ दब कर मर गया। लोगों का कहना है कि कार्यदायी संस्था सेतु निगम के बहुत गैरजिम्मेदाराना ढंग से कार्य करने के चलते यह हादसा हुआ।

विभाग में पेटी कांट्रैक्ट के माध्यम से स्थानीय ठेकेदारों को शटरिंग ढुलाई आदि का ठेका कम पैसों में देकर असली कांट्रैक्टर अपने स्थानीय एजेंट से काम करवाते हैं। बिना किसी सुरक्षा उपकरण और सेफ्टी बेल्ट के अत्यधिक ऊंचाई पर जोखिम भरा काम करने के लिए लोग विवश हैं जिससे छोटी-मोटी दुर्घटनाएं तो आए दिन होती रहती हैं।


चंबल धीरे बहो….भाग-1


बकेवर और भरथना के बाज़ारों में खूब भीड़ है। किसी को कोरोना का भय नहीं। पैदल चलना भी यहां बहुत कठिन है। चेहरों पर मास्क नहीं। सोशल डिस्टेंसिग का जुमला नितांत अर्थहीन हो चुका है। दो दिन पहले ही शाम को कवि मित्र मंगलेश डबराल के निधन की सूचना ने मन को बहुत उद्विग्न कर दिया सो इन कस्बों के रास्ते पर मैं बहुत खामोश बना रहा।

इससे पहले ललित सुरजन और राजीव कटारा के कोविड से मरने की घटनाएं भीतर तक गड़ती चली गईं। विष्णु चंद्र शर्मा भी इस बीमारी की चपेट में आकर हमसे दूर चले गए। खबर मिली कि विष्णु जी की स्मृति में बागबाहरा से रजत कृष्ण ‘सर्वनाम’ का एक अंक निकालना चाहते हैं।

दूर खेतों में गेहूं और सरसों की फसल को अन्ना जानवर उजाड़ रहे हैं। किसान इससे बेचैन हैं। पिछले कुछ दिनों से सूबे के खेतिहर आवारा पशुओं की इस समस्या से हर पल जूझने के लिए रातों में पहरा देते हैं पर इसका कोई स्थायी समाधान नहीं। गौशालाएं बनीं पर उनमें गौवंशों के रहने-खाने की कोई व्यवस्था नहीं।

सैफई विकास खंड क्षेत्र के ग्राम पंचायत शिवपुरी टिकरुआ के मजरा लाडमपुर में बनी गौशाला में दो गायें मर गईं और चार बीमार हैं। अधिकांश गौशालाओं में चारा है, न पानी। छुट्टा बिचरने वाले गोवंश रातों में फसलों को चर जाते हैं। किसान कहते हैं कि चंबल क्षेत्र में यमुना नदी के दो तरफ गो-सफारी बनाने पर किसानों को इस समस्या से निजात मिल सकती है।

यह नई दुग्ध क्रांति की ओर भी अनूठा कदम होगा। चंबल के बीहड़ों में चारे की कमी नहीं है। पानी भी यहां खूब है। इन बीहड़ों में खेती करने वाले किसान भी मानते हैं कि उनकी फसल के लिए जंगली जानवरों से खतरा नहीं लेकिन आवारा घूमते पशु उनके जी का जंजाल हैं।

बसरेहर ब्लॉक कार्यालय के बाहर तो दर्जनों छुट्टा पशु हर समय डेरा जमाए रहते हैं जिसके चलते परिसर में बने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक जाने में मरीजों को असुविधा होती है। कई बार तो भीतर जाने वाली एंबुलेंस का चालक उतर कर इन जानवरों को हांक कर हटाता है।

इटावा की लॉयन सफारी में शेरनी जेसिका ने दो शावकों को जन्म दिया है। दिलचस्प है कि उनका नामकरण ज्योतिश शास्त्र के अनुसार किया जाएगा। जेसिका तीन बार पहले भी मां बन चुकी है जिसके सभी बच्चे स्वस्थ हैं। इस सफारी में जेसिका के कुनबे में नौ में से आठ शावक हैं जबकि एक शावक जेसिका की संतान जेनिफर का है।

350 हेक्टेयर क्षेत्र में इस सफारी के निर्माण के बाद यहां हैदराबाद और गुजरात से शेरों को लाया गया था। एक समय यहां कटीली झाड़ियां और बबूल का ही साम्राज्य था लेकिन अब यह सफारी एशिया में बब्बर शेरों का पहला प्रजनन केंद्र बनने की ओर प्रतीक्षारत है। एक और शावक के जन्म लेते ही इसे ‘सेंट्रल जू अथारिटी’ (सीजेडए) में शामिल कर लिया जाएगा।

कोरोना संकट के चलते यह लॉयन सफारी अभी बंद है। केन्द्रीय प्राधिकरण और स्वास्थ्य विभाग अभी इसके खुलने की अनुमति नहीं दे रहा। स्पेन के बार्सिलोना चिडि़याघर में चार शेरों की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव मिलने की खबर के बाद यहां काफी सतर्कता बरती जा रही है। शेरों की देखभाल करने वाले कर्मचारियों को डॉन्गरी, ग्लब्स, गम बूट और मॉस्क दे दिए गए हैं। जानवरों के लिए आइसोलेशन सेन्टर हैं और उनकी थर्मल स्क्रीनिंग भी हो रही है।

चंबल के इस इलाके में विलायती बबूल कही जाने वाली जलौनी लकड़ी बहुतायत में होती है। इसकी कटान यहां बड़ा उद्योग है, पर उसकी आड़ में इमारती और प्रतिबंधित लकड़ी का अवैध करोबार पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत से खूब चल रहा है।

बिठौली से लेकर बकेवर तक दर्जनों ट्रैक्टर जाहिरा तौर पर जलौनी लकड़़ी लाद कर लाते हैं लेकिन ट्रालियों में नीचे कटान के लिए प्रतिबंधित लकड़ी भरी होती है। सभी थानों और सेंचुरी के नाकों को बेधड़क पार कर लेना इनके लिए बहुत आसान होता है। इस बीहड़ में शीशम, नीम, छैकुर, रेंकजा जैसे पेड़ों के अवैध कटान को रोकना संभव नहीं है। यह पर्यावरण के लिए बहुत नुकसानदेह है लेकिन हरी लकडि़यों का यह नाजायज कारोबार तस्करों के लिए ‘हरा सोना’ है।

अंधेरे में मोर बोलने की आवाजें शहर से दूर होने का अहसास कराती हैं। देर रात सरसराती हवा में पीपल के डोलते पत्ते उनींदी आंखों को उचाट कर देते हैं। दिन में गिलहरियां यहां खूब उछल-कूद करती हैं। सवेरे कोहरे की झीनी चादर से झांकता सूरज थोड़ी देर तक शर्म से नई नवेली दुल्हन बना रहता है और शाम से पहले मुंह ढांपकर फिर से आंख मिचौनी खेलता है।

तीन दिन से उसके इसी चाल-चलन ने सुबह-शाम थोड़ी ठिठुरन बढ़ा दी है। बाहर दुकानों में रखी सब्जियों में रौनक आ गई है। फर्रुखाबाद और मैनपुरी से अचानक अगौती आलू की आमद बढ़ने से इसका भाव गिर गया है। सैफई क्षेत्र भी आलू की पैदावार में अग्रणी है। नजदीकी जिलों से सबसे ज्यादा आलू फर्रुखाबाद में होता है जहां जिला आलू अधिकारी भी तैनात है।

इस पूरे क्षेत्र में कोल्ड स्टोर बड़ी संख्या में हैं। बाबा नागार्जुन ने एक बार मेरे घर आने पर आलू किसानों की समस्याओं पर बात करते हुए काज़ी अब्दुल सत्तार के किसी उपन्यास की चर्चा की थी। आने वाले शीत के दिनों में आलू की फसल को पाले और झुलसा रोग से बचाने के लिए किसान चिंतित हैं। पूरे इलाके में आलू की फसल को लेकर आढ़़ती और बिचौलिये अभी से सक्रिय हो गए हैं।

वे किसानों के खेतों में आकर मौजूदा कीमत के आधार पर अग्रिम पैसा देकर सौदा कर रहे हैं। बाहरी जनपदों के आलू व्यापारी भी किसानों से संपर्क में हैं। यहां तक कि अगले डेढ़-दो महीने बाद तैयार होने वाले आलू की खुदाई के लिए मजदूरी देने को भी तैयार हैं। उन्हें इस बार आलू की कीमत ऊंची रहने का अनुमान है। किसानों का यह शोषण हमारी व्यवस्था का एक बेलगाम पक्ष है जिसे रोकने की कोई जुगत नहीं।

(इस रिपोर्ताज के लेखक जाने माने साहित्यकार हैं, उपनिवेशवाद से मुक्ति के क्रांतिकारी संघर्ष पर उनका लेखन अतुलनीय माना जाता है)

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