मुफ्ती मुहम्मद सलीम नूरी बरेलवी
आला हजरत इमाम अहमद रजा खां (14 जून) को बरेली शहर के मुहल्ला जसोली में पैदा हुए. आपने अपने इल्म की बदौलत कई बड़े कारनामे अंजाम दिए. फतवों की बदौलत मुसलमानों के बीच जटिल मसलों का हल पेश किया. इतने ज्यादा फतवे लिखे कि कई जिल्द वाली फतवों की किताब फतावा-ए-रजविया तैयार हो गई. आपकी यौम-ए-पैदाईश के मौके पर आपका एक अहम फतवा काबिले जिक्र है, जो आपने करेंसी नोटों का चलन शुरू होने के बाद दिया था.
जब दुनियाभर में सोने-चांदी और कांसे वगैरा के सिक्कों का चलन बंद हुआ तो कागज के नोट छापे जाने लगे. तब इस्लामी जगत में सवाल किए जाने लगे कि एक कागज का टुकड़ा जिसकी कोई अहमियत नहीं है, हुकूमतों की मुहर लगने के बाद उससे हजारों, लाखों, करोड़ों का कारोबार हो रहा है, शरीयत के एतबार से क्या यह जायज होगा. जवाब बड़े-बड़े आलिम-ए-दीन की समझ में नहीं आ रहा था. करेंसी को लेकर सवाल मक्का-मदीना शरीफ में भी गर्दिश कर रहा था.
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1905-06 में जब आला हजरत दूसरी बार हज करने के लिए सऊदी अरब गए तो वहां कागज के नोटों को लेकर दुनियाभर से आ रहे सवाल उनके सामने रखकर उनका हल अरबी में लिखने की दरख्वास्त की गई.
आला हजरत ने इस्लामी शरीयत की पुरानी किताबों के हवाले से और कुरान व हदीस की रोशनी में लिखकर फैसला कर दिया. कह दिया कि कागज का नोट माल हैं. इनसे लेन-देने जायज है. इनका मालिक अगर साहिब-ए-निसाब (उसके पास शरीयत में निर्धारित माल है) तो उस पर जकात फर्ज है तो वह करेंसी नोट से जकात अदा कर सकता है.
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इस एक सवाल के जवाब में 100 पेज की किताब तैयार हो गई. आला हजरत ने बहुत तफ्सील के साथ करेंसी नोट को जायज करने का फतवा दिया था. इस किताब के बूते इस्लामी दुनिया ने हिंदुस्तानी आलिम व मुजद्दिद आला हजरत के इल्म का लोहा माना.
आपने महज दीन ही नहीं, बल्कि दुनियावी इल्म पर भी तमाम किताबें लिखी हैं. यही वजह है कि दुनियाभर में उनके करोड़ों फॉलोवर हैं. मानने वाले खुद को रजवी, सुन्नी बरेलवी कहलाते हैं. इन मुसलमानों का बरेली की दरगाह आला हजरत मरकज (केंद्र) है. वे अपने दीनी मसाइल पर यहीं से राय मांगते हैं.
(लेखक आला हजरत द्वारा स्थापित मदरसा मंजरे इस्लाम में शिक्षक हैं. )