UP में होगी बामसेफ 2.0 और योगी 2.0 की टक्कर

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आशीष आनंद-

बामसेफ की प्रेस कांफ्रेंस के 24 घंटे भी नहीं गुजरे और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ट्विटर हैंडल एक के बाद एक दलित प्रेम के ट्वीट दागने लगा। लखनऊ में बसपा के संभावित विधानसभा प्रत्याशियों की कारें भी दौड़ने लगीं। मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी समेत विपक्षी दल और दलित समुदाय को केंद्रित कर राजनीति करने वाले मंथन करने लगे। आने वाले दिनों में यह भी तय हो जाएगा कि देश में मोदी 2.0 और विदेश में तालिबान 2.0 देख चुके लोग प्रदेश में योगी 2.0 देखेंगे या बामसेफ 2.0 के सहयोग से बनी सरकार।

लखनऊ में 19 सितंबर को बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम ने आने वाले चुनाव की योजना पर स्वतंत्र डिजिटल मीडिया के साथ खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि बामसेफ हर सूरत में एससी-एसटी-ओबीसी और माइनॉरिटी की एकजुटता पर बने नए गठित दल बहुजन मुक्ति पार्टी को समर्थन देकर चुनाव लड़ाएगा। चाहे यह दल स्वतंत्र रूप से लड़े या गठबंधन के साथ। साफतौर पर यह भी कहा कि मजबूत गठबंधन ही भाजपा को टक्कर दे सकता है, अन्यथा भाजपा का सत्ता में आना लगभग सुनिश्चित है। जो विधानसभा में बाजी मारेगा, वही लोकसभा में भी विजेता बनेगा।

 

बहुजन मुक्ति पार्टी में ‘मुक्ति’ शब्द को उन्होंने मायावती के नेतृत्व में बसपा के कामकाज और दिशा के भटकाव का नतीजा करार दिया। उन्होंने कहा कि बसपा का हासिल सिर्फ मायावती का व्यक्तिगत विकास है, बहुजनों के लिए यह गुलामी साबित हुआ। बसपा ही एकमात्र दल दिखाई दे रहा है उत्तरप्रदेश की राजनीति में जिसको भाजपा की ब्राह्मणवादपरस्त नीतियों से कोई ऐतराज नहीं है। बसपा तभी तक ताकत थी, जब तक बामसेफ उसके साथ था। आज यह दल खोखला होकर अपने पतन के आखिरी पड़ाव पर है। हर गंभीर मामले में चुप्पी का कोई लालच हो सकता है, जिसकी उम्मीद भाजपा से हो सकती है।

वामन मेश्राम ने अन्य दलों और राजनीति के मुद्दे पर भी बेबाकी से बात रखी। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को इस खुशफहमी में रहने की जरूरत नहीं है कि अकेले दम पर उनकी सरकार बन रही है, ऐसा आज की तारीख में कोई भी विपक्षी दल सोचता है तो उसको पछताने के अलावा कुछ नहीं होगा।

आजाद समाज पार्टी को लेकर कहा, ‘उनकी नजदीकियां प्रियंका गांधी से हैं, कुछ युवाओं की भीड़ से चेहरा चमकाने से समाज बदलाव की जंग नहीं लड़ी जाती, इसके लिए वैचारिक परिपक्वता भी चाहिए होती है। कारपोरेट मीडिया ऐसे लोगों को किसी मकसद से तवज्जो देती है। इतना बड़ा कैडर बेस संगठन होने के बावजूद यही मीडिया बामसेफ के एजेंडे पर कभी बात नहीं करती, यह उसका बुनियादी चरित्र है।’

किसान आंदोलन भी भाजपा के खिलाफ मिशन यूपी शुरू कर चुका है, तो क्या बामसेफ का उसके साथ कोई तालमेल बनेगा? इस सवाल पर वामन मेश्राम ने कहा कि हमारी सहानुभूति आंदोलन के साथ है, लेकिन हम पिछलग्गू बनने को तैयार नहीं हैं।

”हमने दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन के धरने में चार महीने कैंप लगाया, लेकिन पंजाब, हरियाणा और पश्चिम यूपी के 40 लोगों की कोर कमेटी को वो 41 करने को तैयार नहीं हैं। भारत बंद जैसे आह्वान के लिए पूरे भारत से आवाज उठाने के लिए बाकी देश के प्रतिनिधि भी तो होने चाहिए। बामसेफ देशव्यापी संगठन है, लेकिन उनका इस मामले में नजरिया तंग है। आंदोलन की मांगें जायज हैं इसलिए हमारी हमदर्दी है।”

‘द लीडर’ से खास बातचीत में उन्होंने कृषि सुधार पर नजरिया पेश किया। उनका कहना है कि छोटी खेतियों को सामूहिक फार्म बनाया जाना चाहिए और उसमें सरकार को हर संसाधन के लिए निवेश करना चाहिए, जिससे देहात को भार शहरों पर न हो और देहात की गरीब बहुजन आबादी सक्षम हो। वामन मेश्राम ने इस नजरिए को बुनियादी तौर पर डॉ.आंबेडकर के राज्य समाजवाद के आधार पर बताया, जिसे डॉ.आंबेडकर ने रूसी मॉडल कहकर संबोधित किया था।

सावर्जनिक क्षेत्र में निजीकरण और नए लेबर कोड पर कहा, मजदूर आंदोलन के हम समर्थन में हैं, कोई मोर्चा हमसे संपर्क करेगा तो हम उसका सहयोग करेंगे। निजीकरण या नए कोड का नुकसान भी बहुजन आबादी को ही होगा, उनको खराब जीवन परिस्थितियों के धकेलने की साजिश है, जिसके विरोध की रणनीति हमने बनाई है। सरकार को उसी तरह पीछे हटने को मजबूर होना पड़ेगा, जैसे सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर बामसेफ के दखल के बाद कदम खींचना पड़ा।

‘द लीडर हिंदी’ से बातचीत में बामसेफ चीफ वामन मेश्राम ने कहा कि बामसेफ के 9्र0 प्रतिशत कार्यकर्ता इस वक्त यूपी, खासतौर पर लखनऊ और उसके आसपास सक्रिय हैं, जो 9 अक्टूबर को मान्यवर कांशीराम की पुण्यतिथि पर होने वाली रैली में की तैयारी कर रहे हैं। संगठन के ज्यादातर पूर्णकालिक कार्यकर्ता भी यहीं हैं।

रैली में आने वालों की लगभग तीन हजार बसें बुक होने की सूचना है। निजी वाहनों से आने वालों की संख्या की सूचना जमा की जा रही है। यह ताकत आने वाले चुनाव में भी बीएमपी की जीत का वादा नहीं करेगी, लेकिन एससी-एसटी-ओबीसी और माइनॉरिटी को धोखा देने वाले दलों को निश्चय ही ऐसा सबक सिखाएगी, जिससे उनका राजनीतिक कद और भविष्य दांव पर लग जाएगा।

यहां बता दें, बामसेफ एक जमाने में कांशीराम के नेतृत्व में बहुत तेजी से उभरी और बसपा का जन्म हुआ। बसपा की सपा के साथ सरकार बनीं और फिर बसपा की पूर्ण बहुमत सरकार भी सत्ता में आई। कांशीराम के गुजरने के बाद बसपा की नीतियों से बामसेफ नेतृत्व और कार्यकर्ता खफा हो गए और जमीनी तौर पर अलहदा काम शुरू कर दिया। आज कई प्रकोष्ठ और उसके तेजतर्रार नेता पूरे प्रदेश में दौरा करने में जुटे हैं। दस हजार से ज्यादा बूथों को सीधे तौर पर प्रभारी ही दौरा करके संगठन का ढांचा बना चुके हैं।


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