और यूं ज़िंदा बच निकली अनारकली

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   वीर विनोद छाबड़ा-

‘मुगल-ए-आज़म’ में जिस सलीम-अनारकली की मोहब्बत का ज़िक्र है, उस पर इतिहासकारों के भिन्न मत हैं. कोई इसे ऐतिहासिक कहता है और कोई नही. वैसे ज़्यादातर का कहना भी यही है, इतिहास का इससे कोई लेना-देना नही. ‘मुगल-ए-आज़म’ के निर्माता भी इसके ऐतिहासिक होने का कोई दावा नहीं करते. सलीम-अनारकली को लेकर जितनी भी फ़िल्में बनीं हैं, सब इम्तियाज़ अली ताज के एक स्टेज प्ले पर आधारित बताई जाती हैं. (How Anarkali Escaped Alive)

के.आसिफ़ ने ‘मुगल-ए-आज़म’ की स्क्रिप्ट राइटिंग में जाने-माने अदीबों को लगा रखा था- वज़ाहत मिर्ज़ा, अमान, एहसान रिज़वी और खुद के.आसिफ़ भी जुटे रहते थे. वैसे फ़िल्म के टाइटिल में एक नाम कमाल अमरोही का भी है. लेकिन म्युज़िक डायरेक्टर नौशाद अली ने अपने एक आर्टिकल में फ़रमाया है- मैं भी कई सिटिंग में शामिल रहे, मगर मैंने कमाल को वहां कभी नहीं देखा… वैसे कमाल अमरोही पर इलज़ाम भी रहा कि फिल्म के आइडिया को वो फिल्मिस्तान कंपनी के नन्दलाल जसवंतलाल को लीक करते रहे और यही वज़ह है कि ‘मुगल-ए-आज़म’ (1960) से पहले ‘अनारकली’ (1953) बन गई।

और भी तमाम अड़चनें आईं, लेकिन इसके बावजूद मुगल-ए-आज़म की स्क्रिप्ट पर काम होता रहा, धीरे-धीरे ही सही. एक बार पेंच फंसा, अनारकली के अंत पर. अनारकली ज़िंदा रहे या मार दी जाए. स्क्रिप्ट के मुताबिक़ अनारकली को सजाये मौत दी गई, ज़िंदा दीवार में चुनवा दिया गया. (How Anarkali Escaped Alive)

मगर के. आसिफ़ सहमत नहीं हुए, बहुत दर्दनाक होगा ये. मैं अकबर दि ग्रेट बना रहा हूं. नहीं चाहता कि दुनिया उसे एक निहायत ज़ुल्मी और तानाशाह बादशाह के रूप में याद करे. जब आसिफ़ को याद दिलाया गया कि इम्तियाज़ अली ताज के स्टेज प्ले में ऐसा नहीं था तो उन्होंने इसे सिरे से खारिज कर दिया, ये हिस्ट्री नहीं है. स्क्रिप्ट बदली भी जा सकती है. मगर सबने कहा, ये मुमकिन नहीं कि एक नाव में बकरी हो, घास भी और शेर भी. और तीनों सलामत दरिया पार कर लें.

एक दिन आसिफ़ के पास एक बंदा उपाय लेकर आया, बादशाह सलामत अपने नवरत्नों से मशविरा करें और वो सब सब अनारकली के मौत के वारंट पर दस्तख़त कर दें. बादशाह मजबूर होकर अनारकली को मौत दे दे. इससे बादशाह पर सीधे तोहमत नहीं आएगी. के. आसिफ़ ने इसे वाहियात मशविरा करार देते हुए उन साहब को चाय का प्याला ख़तम किए बिना निकल जाने का हुक्म दे दिया. आधा खाया बिस्कुट भी रखवा लिया. (How Anarkali Escaped Alive)

अगली सिटिंग में वज़ाहत मिर्ज़ा का मशविरा पसंद किया गया, अनारकली दीवार में ज़िंदा चुनवाई जाए, मगर दुनिया की नज़र में. असल में उसे दीवार के पिछले हिस्से से उसे ज़िंदा निकाल कर दूसरे शहर भेज दिया जाए. यानी सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी.


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