प्रकाश के रे-
क्यूबा ने टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया है. उसने अपने देश में अपने वैज्ञानिकों द्वारा पांच वैक्सीन बनाया है, जिसमें से दो लोगों को देने के लिए तैयार हैं. चूँकि क्यूबा एक ग़रीब देश है और वह दशकों से अमेरिका के कठोर प्रतिबंधों को भुगत रहा है, तो उसके पास कोविड वैक्सीन के लिए पैसा नहीं था.
राष्ट्रपति मिगेल ने पिछले साल मई में अपने संस्थानों और वैज्ञानिकों से अनुरोध किया था कि जो कोई भी वैक्सीन बना सकता है, उसे बनाना चाहिए. अन्य वैक्सीनों और परियोजनाओं के पैसे को संस्थानों ने इस मद में डाला और प्रयोग शुरू कर दिए. इन टीकों को विकसित करने में क्यूबा के वैज्ञानिकों ने दवा बनाने या भोजन ख़रीदने के लिए निर्धारित धन से एक भी पाई नहीं लिया है.
अमेरिकी पाबंदियों के कारण ज़रूरी चीज़ों की भी कमी थी. यदि 20% से अधिक अमेरिकी तत्वों से बना कोई मेडिकल से जुड़ा सामान हो, तो उसे क्यूबा को नहीं बेचा जा सकता है. जिन चीज़ों में 10% से अधिक अमेरिकी तत्व हैं, तो उसके लिए विशेष अनुमति लेनी होती है. अमेरिका के डर से भी कंपनियां आम तौर पर क्यूबा से कारोबार नहीं करती हैं.
हालांकि क्यूबा वैक्सीनों के अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम- कोवैक्स- की प्रशंसा करता है, पर वह इस पहल का हिस्सा नहीं है. वह अपना वैक्सीन स्वयं बनाना चाहता था और उस पर अपना नियंत्रण रखना चाहता था. उसकी यह समझ सही साबित हुई.
धनी देशों ने वैक्सीन का बड़ा हिस्सा ख़ुद हड़प लिया है और पश्चिमी कंपनियां भारी मुनाफ़ा कमाने में लगी हैं. विभिन्न रोगों के वैक्सीन बनाने में क्यूबा के शानदार अनुभवों और बायोटेक में उसकी बड़ी उपलब्धियों ने कोरोना वैक्सीन बनाने में उसकी मदद की है.
क्यूबा को उम्मीद है कि अगस्त तक उसकी 70 प्रतिशत वयस्क आबादी को टीका लग जायेगा. उसके वैक्सीनों के नाम भी बड़े दिलचस्प हैं. ‘अब्दाला’ महान साहित्यकार और स्वतंत्रता सेनानी होसे मार्ती (1853-1895) की एक कविता का शीर्षक है. ‘सोबेराना’ का अर्थ है- संप्रभुता. ‘माम्बिसा’ क्यूबा के गुरिल्ला योद्धाओं से संबंधित है.
यह टीका अद्भुत है. इसे नाक से स्प्रे किया जायेगा. क्यूबा अपने टीकों को अनेक ग़रीब देशों को देने के अभियान पर भी काम कर रहा है. अमेरिकी पाबंदियों के कारण वहां सीरिंज की कमी है. इस कमी को दूर करने में क्यूबा ने आर्थिक मदद की अपील की है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)