The leader Hindi:दिल्ली के छावला इलाके में 2012 में हुए सामूहिक दुष्कर्म के मामले में सभी तीन आरोपियों के बरी कर दिया गया. आरोपियों को बरी करने के बाद पीड़िता के माता-पिता ने कहा, “हम न केवल जंग हार गए हैं, बल्कि हमारी जीने की इच्छा भी खत्म हो गई है.” पीड़िता के पिता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले से उन्हें निराश किया है और 11 साल से अधिक समय तक लड़ाई लड़ने के बाद न्यायपालिका से उनका विश्वास उठ गया है। यह आरोप भी लगाया कि ‘सिस्टम’ उनकी गरीबी का फायदा उठा रहा है. साल 2014 में, एक निचली कोर्ट ने मामले को ‘दुर्लभतम’ बताते हुए तीनों आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी. बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा था.
बता दें कि तीन लोगों पर फरवरी 2012 में 19 वर्षीय युवती के अपहरण, बलात्कार और बेरहमी से हत्या करने का आरोप है. अपहरण के तीन दिन बाद उसका क्षत-विक्षत शव मिला था.
पीड़िता की मां ने सुप्रीम कोर्ट परिसर के बाहर फूट-फूटकर रोते हुए कहा, “11 साल बाद भी यह फैसला आया है. हम हार गए… हम जंग हार गए… मैं उम्मीद के साथ जी रही थी… मेरे जीने की इच्छा खत्म हो गई है’ मुझे लगता था कि मेरी बेटी को इंसाफ मिलेगा.” पीड़िता के पिता ने कहा, “अपराधियों के साथ जो होना था, वह हमारे साथ हुआ. 11 साल से हम दर-दर भटक रहे हैं. निचली कोर्ट ने भी अपना फैसला सुनाया. हमें राहत मिली. हाईकोर्ट से भी हमें आश्वासन मिला लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हमें निराश किया. अपराधियों के साथ जो होना था, वह हमारे साथ हुआ.”
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की. कोर्ट परिसर के बाहर पीड़िता के माता-पिता के साथ मौजूद महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा, “मैं पूरी तरह से स्तब्ध हूं. सुबह, हमें पूरी उम्मीद थी कि शीर्ष अदालत मौत की सजा को बरकरार रखेगी और हमें यह भी लगता था कि वे मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल सकते हैं.”वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता विनोद बछेती पिछले 10 साल से न्याय की लड़ाई में परिवार का समर्थन कर रहे थे. उन्होंने कहा, ‘हम पिछले 10 साल से परिवार का समर्थन कर रहे हैं. घटना 9 फरवरी, 2012 को हुई और 10 महीने बाद निर्भया सामूहिक बलात्कार हुआ. (छावला) पीड़िता अपने परिवार का खर्च भी उठा रही थी.’
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