पसमांदा मुसलमानों पर भाजपा का दांव-तुरुप का इक्का या फिर उलट होगा इसका अंजाम

द लीडर. भारतीय जनता पार्टी का पसमांदा मुसलमानों पर दांव चुनाव में तुरुप का इक्का साबित होगा या फिर इसके उलट नतीजे आएंगे. अंजाम अच्छा होगा या ख़राब यह अलग बात लेकिन सेकुलर कहे जाने वाले राजनीतिक दलों के गलियारों में हलचल साफ दिखाई दे रही है. भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने की जो बात कही थी यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में उस पर अमल शुरू कर दिया गया है.


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इसका आग़ाज़ लखनऊ में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के पसमांदा बुद्धिजीवी सम्मेलन से किया गया. इसमें डिप्टी सीएम बृजेश पाठक और सरकार में इकलौते मुस्लिम मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी ने हिस्सा लिया. दानिश आज़ाद पसमांदा समाज से आते हैं. इस सम्मेलन में डिप्टी सीएम सबका साथ सबका विकास से थोड़ा आगे जाकर बोले. कहा कि उनकी सरकार हिंदू या मुसलमान के नज़रिये से काम नहीं करती. इल्ज़ाम लगाया कि तथाकथित सेकुलर पार्टियों ने मुसलमानों का इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर किया.


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सत्ता हासिल की लेकिन मुसलमानों को अधिकार नहीं दिए. बिरयानी में तेज़पात के पत्ते की तरह. बिरयानी की लज़्ज़त बढ़ाने वाले तेज़पात को बिरयानी खाते वक़्त जिस तरह निकालकर फेंक दिया जाता है, मुसलमानों के साथ ऐसा ही सुलूक किया. इसके बरख़िलाफ़ भाजपा मुसलमानों की असल शुभचिंतक है. उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए तमाम योजनाओं का लाभ दे रही है. डिप्टी सीएम ने मुसलमानों को लेकर और भी बहुत कुछ कहा.


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राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी भी इसी लाइन पर बोले. बीजेपी मुसलमानों के लिए संजीदगी के साथ सोच रही है. शिक्षा, सुरक्षा और प्रगति को लेकर फ़िक्रमंद है. अब से पहले किसी पार्टी ने ऐसा नहीं किया. यही वजह है कि मुसलमान तरक़्क़ी की दौड़ में पिछड़ते चले गए. उन्हें कभी अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा नहीं दी गई. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले पसमांदा मुसलमानों को अपनी तरफ करने की कोशिश का यह सिलसिला काफी आगे जाएगा.


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यूुपी के विधानसभा चुनाव की बात करें और रुहेलखंड की राजधानी कहलाने वाले बरेली को बतौर नज़ीर पेश करें तो यहां उन मुस्लिम अकसरियत वाले बूथों पर भाजपा उम्मीदवारों के लिए वोट निकले थे, जहां हिंदू आबादी बिल्कुल नहीं है. महानगर के मुहल्ला सैलानी के बूथ पर कैंट से विधायक बने संजीव अग्रवाल को क़रीब डेढ़ सौ वोट मिलना चौंकाने वाली बात थी. तब कहा गया था कि आला हज़रत की नगरी में मुसलमानों की सोच भाजपा को लेकर बदल रही है. बस एक आशंका यही है कि भाजपा अगर मुसलमानों की तरफ़ तेज़ी से बढ़ी तो उसका वो वोट बैंक बिदक सकता है, जिसे 80-20 का नारा देकर अपने पक्ष में मज़बूती के साथ किया गया है. यह सब आशंकाएं और क़यास हैं, जिनके सच या ग़लत साबित होने के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव तक इंतज़ार करना होगा.


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