कृषि कानूनों और CAA-NRC के विरोध पर 16 संगठन बैन, सरकार के खिलाफ ‘युद्ध’ का आरोप

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सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में तेलंगाना सरकार ने 16 संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया। प्रतिबंध की वजह में नए कृषि कानूनों, सीएए-एनआरसी आंदोलन में सक्रिय होना भी गिनाया गया है। प्रतिबंधित संगठनों में रेवोल्यूशनरी राइटर्स एसोसिएशन भी है, जिसके प्रमुख सदस्य प्रसिद्ध तेलुगु कवि वरवर राव हैं, जिन्हें भीमा कोरेगांव केस के तहत गिरफ्तार किया गया है। इस पाबंदी को लेकर कई समूहों ने नाराजगी जताकर साझा बयान जारी किया है।

16 संगठनों पर प्रतिबंध के विरोध में प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, दलित लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, केंद्रीय पंजाबी लेखक सभा, न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव, प्रजा नाट्य मंडली (तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश), अखिल भारतीय दलित लेखिका मंच और इप्टा ने जारी साझा बयान में तेलंगाना सरकार की निंदा की है और पाबंदी को तत्काल निरस्त करने की मांग की है।

जारी किए गए साझे बयान में कहा गया है-

”सरकार का कहना है कि तेलंगाना प्रजा फ्रंट, तेलंगाना असंगठित कार्मिक सामाख्या, तेलंगाना विद्यार्थी वेदिका, डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स आर्गेनाइजेशन, तेलंगाना विद्यार्थी संघम, आदिवासी स्टूडेंट्स यूनियन, कमेटी फार द रिलीज आफ पॉलिटिकल प्रिजनर्स, तेलंगाना रैथंगा समिति, तुडुम डेब्बा, प्रजा कला मंडली, तेलंगाना डेमोक्रेटिक फ्रंट, फोरम अगेंस्ट हिंदू फासिज्म ऑफेंसिव, सिविल लिबर्टीज कमेटी, अमरूला बंधु मित्राला संगम, चैतन्य महिला संगम और रेवोल्यूशनरी राइटर्स एसोसिएशन ‘विरसम’ प्रतिबंधित माओवादी संगठन से संबद्ध हैं और उन्हीं के मोर्चा संगठन के तौर पर काम करते हैं, ये संगठन ‘सरकार के खिलाफ युद्ध’ छेड़े हुए हैं।”

 

Cultural avtivist Gadar

बयान जारी करने वाले संगठनों ने कहा, यह स्पष्ट है कि इन संगठनों पर पाबंदी लगाते हुए तेलंगाना सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के उस ऐतिहासिक फैसले को ध्यान में रखना भी जरूरी नहीं समझा, जिसके तहत जस्टिस काटजू और जस्टिस ज्ञान सुधा मि़श्रा की द्विसदस्यीय पीठ ने कहा था कि महज किसी प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होना किसी व्यक्ति को अपराधी नहीं बनाता, जब तक वह खुद हिंसा में संलिप्त नहीं होता या हिंसा भड़काता नहीं है।

संगठनों पर पाबंदी को उचित ठहराने के सरकारी आदेश में यह भी जोड़ा गया है कि उपरोक्त संगठन न केवल नए कृषि कानूनों की वापसी के लिए जारी आंदोलनों में, धरना प्रदर्शनों में शामिल रहते आए हैं बल्कि नागरिकता संशोधन अधिनियम और नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजन्स को लेकर लंबे समय से जारी रही मुहिम में भी सक्रिय रहे हैं। इतना ही नहीं, सरकारी आदेश यह भी कहता है कि यह शहरी इलाकों में सक्रिय रहते हैं और ‘‘केन्द्र और राज्य सरकारों के खिलाफ मुददा उठाते हुए’’ लोगों को इसमें जोड़ते हैं।

बयान में कहा गया है कि तेलंगाना सरकार का यह कथन एक तरह से हर किस्म के जनतांत्रिक प्रतिरोध के, असहमति की हर आवाज़ के अपराधीकरण का रास्ता खोलता है, जिसे अगर चुनौती नहीं दी गई तो मुल्क के बाकी हिस्से में भी इस तर्क का इस्तेमाल बढ़ेगा।

प्रतिबंध के कारणों में सरकार का यह भी कहना है कि यह सभी संगठन भीमा कोरेगांव मामले में जेलों में बंद लेखकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों की रिहाई के लिए भी सक्रिय रहते हैं।

”क्या सरकार इसी बहाने यह कहना चाहती है कि अगर किसी को गलत ढंग से फंसा कर जेल में ठूंसा जाए, उस स्थिति में भी हमें कुछ नहीं करना चाहिए। दरअसल, इस विशिष्ट मामले में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया के अग्रणी तकनीकीविदों द्वारा की गई जांच में यह विचलित करने वाला तथ्य भी सामने आया है कि किस तरह इन बंदियों में से एक मानवाधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन के कंप्यूटर में ‘सबूत’ प्लांट किए गए ताकि उन सभी को फर्जी मुकदमे में फंसाया जा सके”, बयान जारी करने वाले संगठनों ने कहा।

साझे बयान में इन अग्रणी सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों ने कहा है कि जनता के प्रति किए गए अपने वायदों को पूरा करने में असफल तेलंगाना सरकार उसके खिलाफ बढ़ते असंतोष से ध्यान बंटाने के लिए ऐसे दमनकारी कदम उठा रही है।

16 संगठनों पर पाबंदी को निरस्त करने की मांग दोहराते हुए साझे बयान में यह भी कहा गया है कि भीमा कोरेगांव मामले में लगभग तीन साल से जेलों में बंद सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ मुकदमों को समाप्त किया जाए और सभी को तत्काल जेल से जमानत दी जाए।


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